घनसाली। शनिवार को उत्तराखंड विधानसभा की केदारनाथ सीट पर हुए उपचुनाव का परिणाम सामने आ जाएगा। इस परिणाम से हालांकि राज्य में सत्ताधारी सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन उत्तराखंड की राजनीति में कई नेताओं के भविष्य की दिशा इससे अवश्य तय होगी।
मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर उपचुनाव हारने के बाद केदारनाथ में सबसे ज्यादा सत्ताधारी पार्टी की साख दांव पर लगी है। इस चुनाव में दोनों दलों की हार-जीत राज्य में 2027 के विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार करेगी। यही कारण है कि भाजपा ने इस बार केदारनाथ से अपनी दिवंगत विधायक की बेटी को टिकट न देकर संवेदनाओं की परंपरा तोड़कर आशा नौटियाल पर दांव लगाया है। उत्तराखंड के सभी लोग जानते हैं कि मामला सिर्फ केदारनाथ सीट जीतकर विधानसभा में भाजपा का संख्या बल बढ़ाने का नहीं है, बल्कि केदारनाथ के बहाने भाजपा में सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कुर्सी 2027 तक सुरक्षित रखने का भी है। यदि केदारनाथ की जनता कोई इतर निर्णय देती है तो निश्चित रूप से राज्य में चुनाव मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर नई खींचतान शुरू हो जाएगी।
वहीं दूसरी और कांग्रेस ने यह चुनाव बेहद एकजुटता के साथ लड़ा है और अगर परिणाम उसके पक्ष में आता है तो 2027 की लड़ाई जीतने के रूप में केदारनाथ से शुभ संकेत माना जाएगा। यही नहीं, लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से कांग्रेस नेता गणेश गोदियाल ने बद्रीनाथ से लेकर केदारनाथ तक चुनाव मैदान में डटकर पहाड़ के मुद्दों पर भाजपा सरकार को घेरा है, इससे उत्तराखंड में कांग्रेस को 2027 के पहले ही भाजपा से मुकाबला करने वाला मुख्यमंत्री का लोकप्रिय चेहरा भी मिल गया है।
वहीं मूल निवास, भू-कानून आदि पर पुरजोर आवाज बुलंद करने के बाद भी यह चुनाव उत्तराखंड क्रांतिदल के लिए अगर 5000 वोट भी नहीं जुटा पाता है तो उसे नए सिरे से राजनीति की जमीन की बुनियाद तैयार करनी पड़ेगी। इस चुनाव में बेरोजगार संघ के बॉबी पंवार द्वारा निर्दलीय उम्मीदवार त्रिभुवन को मिलने वाले मत भी यह तय करेंगे कि क्या राज्य में राष्ट्रीय दलों के अलावा कोई संभावना हो सकती है। केदारनाथ की किस पर कृपा होगी यह कल सुबह 11 बजे तक पता चल ही जाएगा।