ऋषिकेश. प्रख्यात पर्यावरणविद, स्वतंत्रता सेनानी व चिपको आंदोलन के नेता श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का आज एम्स ऋषिकेश में निधन हो गया। वे 8 मई से वे कोरोना के उपचार के लिये एम्स ऋषिकेश में भर्ती थे। सुंदरलाल बहुगुणा जी द्वारा किया गया राजशाही के खिलाफ आंदोलन, चिपको आंदोलन, सामाजिक समानता का आंदोलन, शराब बंदी आंदोलन और टिहरी बांध के विरोध में गंगा बचाओ आंदोलन युग युगों तक याद किया जाएगा।
सुंदर लाल बहुगुणा का जन्म टिहरी से 7 मील दूर भागीरथी नदी के पास बसे गांव में मरोड़ा में 9 जनवरी 1927 को हुआ। उनके पिता अम्बादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे तो नाना अभय राम डोभाल राजभक्त जमीदार। लेकिन गांधी जी के शिष्य श्रीदेव सुमन ने टिहरी राजशाही के भक्त परिवार में जन्मे सुदर लाल के जीवन की दिशा ही बदल दी। वह तब महज 13 साल के थे जब टिहरी में श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। अन्य बच्चों के साथ सुंदर लाल भी मैदान में खेल रहे थे। अचानक एक अजनबी युवक वहां आया। जिसने खादी का कुर्ता टोपी और धोती पहनी थी। उसके पास एक संदूकची थी। बच्चों ने कौतूहलवश युवक से पूछा कि संदूकची में क्या है तो उसने संदूकची खोली और पेड़ की छांव में बैठकर चरखे पर सूत कातने लगा। सुमन ने कहा कि यह गांधी जी का चरखा है। इससे हम अपने कपड़े खुद बनाएंगे और अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़ कर जाने को मजबूर कर देंगे। सुमन ने बच्चों से पूछा पढ़ लिख कर तुम क्या करोगे? जवाब मिला राजदरबार की सेवा। सुमन ने कहा फिर जनता की सेवा कौन करेगा? क्या तुम चंद चांदी के टुकड़ों में खुद को बेच दोगे? इस सवाल ने किशोर सुंदर लाल को अंदर तक झकजोर दिया और वे जनता के मुद्दों पर संघर्ष करने गांधीवादी रास्ते के सफर पर चल पड़े.