टिहरी. पिछले कोरोना काल में रोजी रोजगार बंद होने से गांव लौटे युवाओं व ग्रामीणों के लिए बरदान साबित हुई देश की सबसे बड़ी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में इस बार भी जिला पंचायत टिहरी गढ़वाल ने वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए 6 अरब 3 करोड़ 95 लाख 89 हजार का बजट अनुमोदित कर दिया है. जिले भर में इस योजना से 21606 कार्य किये जायेंगे.
फूलों की खेती, नींबू की बागवानी, चारा विकास आदि को प्राथमिकता
जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सोना सजवाण जी ने पत्रकार वार्ता में बताया कि वित्तीय वर्ष 2021-2022 की योजना का अनुमोदन कर दिया गया है. उन्होंने बताया कि कुल योजना का 70 प्रतिशत बजट प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण पर खर्च किया जाएगा. आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को साकार करने जिला पंचायत टिहरी गढ़वाल द्वारा अनुमोदित बजट में इस बार कृषि आधारित कार्यों को प्राथमिकता दी गई है. जिसमें फूलों की खेती, नींबू की बागवानी, चारा विकास, 60 लाख लीटर क्षमता के सिंचाई टैंकों की मरम्मत के कार्य होंगे. उन्होंने बताया कि इस वर्ष चार हजार से भी अधिक योजनाओं को बढ़ाया गया है, जबकि पिछले बजट में 17351 ही स्वीकृत थी.
भिलंगना के लिए 96.53 करोड़ स्वीकृत
जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सोनादेवी सजवाण ने ब्लाकवार योजनाएं व आवंटित बजट की जानकारी देते हुए कहा कि इस वित्तीय वर्ष में थौलधार ब्लाक की 2486 योजनाओं के लिए 59.93 करोड़, कीर्तिनगर ब्लाक की 2483 योजनाओं के लिए 54.97 करोड़, जौनपुर ब्लाक की 1920 योजनाओं के लिए 51.82 करोड़, नरेंद्रनगर ब्लाक की 3352 योजनाओं के लिए 53.18 करोड़, जाखणीधार ब्लाक की 1803 योजनाओं के लिए 57.25 करोड़, चंबा ब्लाक की 2321 योजनाओं के लिए 70.04 करोड़, देवप्रयाग ब्लाक की 2028 योजनाओं के लिए 65.69 करोड़, प्रतापनगर ब्लाक की 2375 योजनाओं के लिए 94.50 करोड़, भिलंगना ब्लाक की 2838 योजनाओं के लिए 96.53 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है.
इस बार 4000 से भी अधिक योजनाएं बढ़ीं
उल्लेखनीय है कि इस वित्तीय वर्ष के बजट में पिछली बार के 17351 कार्यों के मुकाबले चार हजार से भी अधिक योजनाओं को बढ़ाया गया है. कोराना की पहली लहर में पिछली बार गांवों की आर्थिकी सुदृढ़ करने चार अरब 67 करोड़ 73 लाख 61 हजार रुपए की योजनाएं बरदान साबित हुई थी. जिला पंचायत के बजट अनुमोदित होने से अब कोरोना की इस दूसरी लहर में रोजगार की तलाश में बैठे हजारों लोगों को जहां गांव में ही काम मिल सकेगा, वहीं प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और संरक्षण भी हो सकेगा.