उत्तराखंड में चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) सदियों से देश व दुनिया के लोगों के लिए आस्था का प्रतीक रही है. उत्तराखंड सरकार के विजन और केंद्र के सहयोग से आपदा के बाद केदारनाथ का पुनर्निमाण और आलवेदर रोड की सुगमता ने अब देवभूमि के इन धामों की यात्रा और भी सुगम बना दी है. यही कारण है कि कोरोना पाबंदी खत्म होने पर दो साल बाद जब चारधाम यात्रा 2022 पुन: शुरू हुई तो दुनियाभर के श्रद्धालुओं का रैला देवभूमि उत्तराखंड की ओर उमड़ रहा है.
उत्तराखंड के चारधामों में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़ उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाओं की ओर इशारा कर रही है. उत्तराखंड सरकार द्वारा 13 डिस्ट्रक्ट 13 डेस्टीनेशन की संकल्पना के बावजूद देशभर के श्रद्धालुओं का मुख्य लक्ष्य अभी चारधाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ पहुंचना ही है.
ऐसे में यह मांग जोर पकड़ रही है कि इन धामों में उमड़ती भीड़ और व्यवस्थाओं पर बोझ हलका करने के लिए चारधाम के रूट वाले पौराणिक देवस्थलों को विकसित कर पर्यटन तीर्थाटन को क्षेत्रवासियों के लिए अवसर में बदला जाए. चार धामों के मध्य गंगोत्री केदारनाथ यात्रा मार्ग पर ऐसा ही एक धाम बूढ़ा केदारनाथ (Budha kedarnath) भी है, जहां पांचवां धाम बनाने की मांग सालों से क्षेत्र के समाजसेवी, विचारक करते रहे हैं. इन दिनों क्षेत्र के स्थानीय निवासी और युवा समाजसेवी व प्रखर विचारक श्री सागर सुनार (sagar sunar) ‘बूढाकेदारिया’ ने बूढ़ा केदारनाथ धाम को पांचवें धाम विकसित करने को लेकर अनेक सुझाव सोशल मीडिया पर प्रस्तुत किए हैं.
सागर सुनार ने कहा है कि 2013 में आयी आपदा व विकास की मुख्यधारा से वंचित यह क्षेत्र, अन्य धामों की भांति कम ही विकसित हो पाया है. जिसके लिए उन्होंने कुछ सुझावों की ओर लोगों का ध्यान अवगत कराया है, प्रस्तुत हैं उन विचारों के प्रमुख अंश-
- बूढ़ा केदारनाथ का विज्ञापन (प्रचार-प्रसार)- सामान्यत: यह देखा जा रहा है कि यात्री जो यहां दर्शन कर रहे हैं, उन्हें यहां के बारे में धार्मिक महत्व की सम्पूर्ण जानकारी नहीं है. उन्हें केवल ड्राइवर या ट्रैवल कंपनियां अपने दिन व किलोमीटर बढ़ाने के लिए यहां लाते हैं. जबकि यात्रियों को बूढ़ा केदारनाथ धाम के महत्व की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि वे इसका प्रचार प्रसार अन्य लोगों तक भी करें. इसके लिए गंगोत्री से धौंतरी तक बूढ़ा केदारनाथ के होर्डिंग व रोड साइन बोर्ड लगवाए जा सकते हैं और मंदिर के पौराणिक महत्व को अभिलेखों द्वारा यात्रियों तक पहुंचाया जा सकता है.
- सुनार कहते हैं कि नितकार्य हेतु व्यवस्था के तहत सर्वप्रथम बूढ़ा केदारनाथ धाम में दर्शनार्थियों के लिए उचित रहने खाने व शौचालय आदि की व्यवस्था पर ध्यान देने की आवश्यकता है. क्योंकि अधिकांश यात्री सबसे पहले यही पूछते हैं कि यहां पर शौचालय कहां है. यदि हम दूर देश-विदेश से आने वाले यात्रियों को उचित स्वच्छ शुलभ शौचालय उपलब्ध करवाते हैं, तो यात्रियों को सुविधा मिलेगी व वह औरों को भी यहां आने के लिए प्रेरित करेंगे.
- स्नान घाट का निर्माण- चारों धाम में यात्री दर्शन से पहले कुंड, गंगा आदि में स्नान करते हैं, लेकिन यहां ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जबकि पास में सुंदर नदी है, जिसको विकसित कर, स्नान घाट बनाकर यात्रियों के लिए यह सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं.
- सौन्दर्यीकरण- यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है उतना ही भौगोलिक रूप से रमणीय हैं, लेकिन मन्दिर व गांव के भौतिक सौन्दर्यीकरण हेतु हम यहां बहुत बदलाव कर सकते. आधुनिक रूप से यहां बहुत कुछ संभावनाएं हैं जो यहां यात्रियों को लुभाने का काम कर सकती हैं.
- ठहरने की उचित व्यवस्था- सागर सुनार कहते हैं कि यहां यात्री सुबह के समय पहुंचते हैं और दर्शन कर अगस्तमुनि या गुप्तकाशी के लिए रवाना हो जाते हैं, क्योंकि यहां संचार माध्यम से वह पहले ही पता कर लेते हैं कि कहां कहां रुकने की व्यवस्था है, यहां लगभग पांच सौ से हजार व्यक्तियों हेतु रहने खाने की व्यवस्था हो तो यात्री यहां रुकना पसंद करेंगे और जिसका लाभ स्थानीय लोगों को होगा.
- सागर सुनार सुझाव देते हैं कि आसपास के पर्यटन स्थलों की जानकारी यात्री पूछते हैं. यहां जब वे आते हैं तो सबसे पहले वह यही पूछते हैं कि यहां ऐसा रमणीय स्थान कहां है, जहां हम जा सकते हैं, देख सकते हैं. तो सरकार को चाहिए कि यहां के स्थानीय पर्यटन स्थलों, तालों, बुग्यालों पर डेवलप कर सकते हैं जिनसे यात्री या पर्यटक इस स्थान पर रुकने के लिए मजबूर हो जाए .
- दो नदियों से अपार संभावनाएं- यह स्थान दो नदियों के मध्य स्थित है यहां नदियों का उपयोग कर यात्रियों के लिए कुछ बेहतर प्रस्तुत किया जा सकता है. जिससे कि यह क्षेत्र विकास की ओर अग्रसर हो सके.
स्थानीय युवा विचारक सागर सुनार ने अपने इन विचारों से सम्बन्धित कुछ प्रोजेक्ट भी बनाए हैं, जो कि मैप के साथ तैयार किये गए हैं. साथ ही इन योजनाओं व नीतियों मे अपार रोजगार को भी मुख्य उद्देश्य पर रखा है.
पांडवों को बूढे साधु के रूप में मिले थे भगवान भोलेनाथ
बता दें कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार टिहरी जनपद के बूढ़ा केदारनाथ में पांडवों को भगवान भोलेनाथ बूढे साधु के रूप में मिले थे, जो कि पांडवों को देख अंर्तध्यान हो गए. उस वक्त वहां पर एक शिला प्रकट हुई. पांडवों ने इस पर अपनी आकृतियों की शिलालेख बनवायी और शिव को ढूंडने हिमालय की ओर निकल पड़े. महाभारत के केदारखण्ड के निन्यानवें अध्याय में वर्णित यह वही स्थान हैं जहां पांडवों को प्रथम बार बूढे रूप में शिव के दर्शन हुए थे. प्राचीन काल से ही यह स्थली पवित्र, पूजनीय व रमणीय है. जो कि दर्शनार्थियों को लुभाती है.