देहरादून. उत्तराखंड के पहले व एकमात्र टाइप-1 डायबिटीज़ NGO (Type-1 Diabetes NGO) द्वारा देहरादून में प्रदेश का पहला सामुदायिक केंद्र खोला गया. इस अवसर पर मुफ्त स्वास्थ्य शिविर का आयोजन भी किया गया. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि अपर मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी जी रहीं तथा विशिष्ट अतिथि पूर्व डीजीपी अनिल कुमार रतूड़ी जी रहे.
श्री रतूड़ी जी ने डायबिटीज़ के साथ जी रहे नन्हे मुन्ने बच्चों को अनुशासन के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी और कहा कि क्रिकेट खिलाड़ी वसीम अकरम ने भी टाइप 1 डायबिटीज से लड़ कर क्रिकेट जगत में एक ऊंचा नाम कमाया है तो आप भी एक अच्छी जीवनशैली के साथ सब कुछ हासिल कर सकते हैं. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती रतूड़ी जी ने भी बच्चों तथा उनके परिजनों का हौसला बढ़ाया और अनुशासन को न केवल बच्चे, बल्कि पारिवारिक स्तर पर लागू करने पर जोर दिया.
श्रीमती रतूड़ी जी ने उदय संस्था की संस्थापक एवं अध्यक्ष रेखा नेगी, सचिव डॉ. आशीष सेठी, श्रीमती गुंजन डोरा तथा सभी बच्चों के परिजनों को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार द्वारा जरूर ही हम इस पहल को हर संभव आगे बढ़ायेंगे ताकि डायबिटीज़ के साथ जी रहे हर बच्चे के जीवन को स्वस्थ और आसान बना सकें.
बता दें कि टाइप 1 डायबिटीज़ (Type-1 Diabetes) के साथ जी रहे बच्चों को एक दिन में 4 से 5 बार इंसुलिन इंजेक्शन लेना पड़ता है और 5 से 7 बार शुगर का स्तर चैक करना पड़ता है. उदय संस्था की अध्यक्ष रेखा नेगी ने सरकार का आभार व्यक्त किया और बताया गया कि देश में सबसे पहले उत्तराखंड सरकार द्वारा यह ऐतिहासिक मुहिम चलाई गई है, जिसमें कि सभी टाइप 1 डायबिटीज़ वाले बच्चों को सरकारी अस्पताल द्वारा मुफ्त इंसुलिन उपलब्ध कराई जा रही है जो कि गरीब परिवारों के लिए बहुत ही राहतपूर्ण है.
संस्था द्वारा आयोजित स्वास्थ्य शिविर में 150 से अधिक लोगों को डायबिटीज़ की जानकारी एवं जागरूकता दी गई और लगभग 50 टाइप 1 डायबिटीज़ के बच्चों की मुफ्त Hba1c जांच, मुफ्त चिकित्सक परामर्श एवं आहार परामर्श दिया गया. कार्यक्रम के अतिथियों द्वारा निहारिशी, शौर्य चौहान, लक्ष्य ईष्टवाल, कनिका, गुनवीर, शाकिब तथा अन्य सभी बच्चों को ड्राइंग काम्पिटीशन मे उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु उपहार भी दिए गए.
क्या है टाइप 1 डायबिटीज़
टाइप 1 डायबिटीज़ को अकसर इंसुलिन पर निर्भर डायबिटीज़ के रूप में जाना जाता है. इसे कभी-कभी किशोर डायबिटीज़ या कम उम्र में होने वाली डायबिटीज़ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह अकसर 40 साल की उम्र से पहले, आम तौर से किशोर उम्र के दौरान विकसित हो जाती है.
टाइप 1 डायबिटीज़ में, अग्न्याशय (पेट के पीछे छोटी ग्रंथि) किसी इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता. इंसुलिन वह हार्मोन है, जो रक्त ग्लूकोज़ के स्तर को नियंत्रित करता है. अगर रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है, तो यह शरीर के अंगों को गंभीर रूप से नुक़सान पहुंचा सकता है.
टाइप 1 डायबिटीज़ में जीवन भर इंसुलिन इंजेक्शन लेने की ज़रूरत होती है. स्वास्थ्यकारी आहार खाने, नियमित व्यायाम करने और नियमित रक्त जाँच करने के भी रक्त ग्लूकोज़ का स्तर संतुलित रहता है.