वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रदीप बहुगुणा
देहरादून. देश विदेश के शोधार्थियों, उत्तराखंड के कला और इतिहास प्रेमियों के लिए इन दिनों भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उत्तराखंड आंदोलन की घटनाएं सजीव हो उठी हैं. दून पुस्तकालय शोध केन्द्र की ओर से देहरादून के राजपुर रोड स्थित इंद्रलोक होटल की आर्ट गैलरी में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस से लेकर 20 दिसंबर तक प्रदर्शनी लगाई गई है.
इस निशुल्क प्रदर्शनी में जहां भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के विभिन्न पहुलुओं को तत्कालीन अखबारों में प्रकाशित खबरों की कतरनों और पेंटिंग के जरिए उकेरा गया है, वहीं उत्तराखंड राज्य निर्माण के आंदोलन की अनेक घटनाओं को भी खूबसूरत चित्रकला के जरिए प्रदर्शनी में दर्शाता गया है. इंद्रलोक होटल की आर्ट गैलरी की दीवारों पर टंगी तस्वीर रूपी कर्मभूमि, युगवाणी, हिमाचल, अल्मोड़ा अखबार, शक्ति, गढ़वाली, गढ़वाल समाचार, क्षत्रिय वीर तरुण कुमाऊं और विशाल कीर्ति की कतरनों के चित्र आजादी के मतवालों और उत्तराखंड राज्य के लोगों की जीवित जन भावनाओं को बखूबी बयां कर रही हैं.
यहां लगाई गई प्रदर्शनी में स्वतंतत्रता आंदोलन के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले मतवालों की वीरता का उल्लेख करती कतरने आगंतुकों को इतिहास को करीब से रूबरू करा रही हैं. प्रदर्शनी में स्वतंतत्रता आंदोलन और टिहरी रियासत में राजाओं के प्रजा पर जुल्म और प्रजा के लिए लड़ने वाले मतवालों नागेन्द्र सकलानी और मोलू सिंह भरदारी के साथ हुए घटनाक्रम और उनके योगदान से टिहरी राजशाही के तख्तापटल को खूबसूरती से सहेजकर रखी गई कतरनों से प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया है. इतना ही नहीं दून पुस्तकालय और शोध केन्द्र की प्रदर्शनी में टिहरी राजशाही के तख्ता पलट के अलावा वन अधिकारों के लिए 30 मई को तिलाड़ी और जेल में हुए शहीदों की सूची, स्वतंत्रता आंदोलन में जेल गए सेनानियों का ब्योरा और उस दौरान उत्तराखंड में कांग्रेस की गतिविधियों का भी जिक्र है.
प्रदर्शनी के जरिए बताया गया था कि राजशाही ने आजादी के आंदोलन को फेल करने के लिए कैसे जातिवाद का जहर फैलाने की कोशिशों के तहत प्रजा हितैषणी सभा बनाई. बावजूद इसके आजादी के मतवालों ने 10 जनवरी 1948 को देवप्रयाग और कीर्तिनगर में समानांतर सरकार गठित कर दी. 11 जनवरी को राजा की फौज हवालात से डिप्टी कलेक्टर और डिप्टी एसपी को छुड़ाकर ले गयी. लेकिन जाते हुए उन्होंने मोलू भरदारी और नागेन्द्र सकलानी को गोली मार दी. फौज के साए में भागते हुए जनता ने उन्हें पकड़ लिया और आंदोलन का नेतृत्व कर रहे दादा दौलतराम ने उन्हें जनता से बचाने के लिए फिर से हवालात में बंद कर दिया.
12 जनवरी को वहां से दोनों शहीदों के शवों के साथ देवप्रयाग और खासपट्टी होकर टिहरी पहुंची जनता ने 14 जनवरी 48 को सत्ता अपने हाथ में ले ली. वहां भी प्रजामंडल के प्रमुख वीरेंद्र दत्त सकलानी ने राजा के कारिंदो को जनता के कोप से बचाने के लिए जेल में बंद कर दिया. 15 जनवरी को भारत सरकार की ओर से अधिकारी और पुलिस टिहरी पहुंची और प्रजामंडल के सहयोग से जुलाई 1949 तक वहां शासन चला. बाद में टिहरी का उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत में विलय हो गया. इसके अलावा पृथक राज्य के लिए उत्तराखंड आंदोलन में जनता की भावनाओं के ज्वार और असी ‘एकजुट एकमुठ’ भावनाओं के फलस्वरूप नए राज्य उत्तराखंड के उदय तक की लाजवाब चित्रयात्रा प्रदर्शनी के माध्यम से संजोई गई है.
प्रदर्शनी को देखने बड़ी संख्या में उमड़ रहे लोग
देहरादून के राजपुर रोड स्थित इंद्रलोक होटल की आर्ट गैलरी में दून पुस्तकालय और शोध केन्द्र की इस प्रदर्शनी को देखने बड़ी संख्या में लोग उमड़ रहे हैं. यहां साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी, पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड सुरजीत किशोर, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सलाहकार प्रो. बीके जोशी व निदेशकएन.रवि शंकर प्रो. ए. एन. पुरोहित, कला केंद्र के कर्नल दुग्गल, कुसुम नौटियाल, मुनिराम सकलानी, मुकेश नौटियाल, जय सिंह रावत जैसी राज्य की कला साहित्यिक हस्तियों, जनहित की पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों ने शामिल होकर इस प्रदर्शनी की सराहना की है. वहीं इतिहास और राज्य आंदोलन पर शोध करने वाले शोधार्थियों का यहां लगातार तांता लगा हुआ है. प्रदर्शनी 20 दिसंबर तक चलेगी.
प्रदर्शनी को मूर्त रूप देने में इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना, शंकर सिंह भाटिया और संगीत सिनेमा व कला के जानकार निकोलस हॉफलैण्ड ने अहम भूमिका निभाई. इस प्रदर्शनी का उद्देश्य लोगों को गढ़वाल और कुमाऊ के समाचार पत्रों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उत्तराखंड राज्य आंदोलन की घटनाओं की जानकारी उपलब्ध कराना है. प्रदर्शनी के माध्यम से तत्कालीन समय के समाचार पत्रों की खबरों और उनके सम्पादकीय आलेखों के दुर्लभ और निर्मीक पूर्ण विचारों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया.
–चन्द्रशेखर तिवारी, प्रोग्राम एसोसिएट, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र
डॉ. योगेश धस्माना ने बताया कि उत्तराखण्ड में उन्नीसवीं सदी के अन्तिम दशकों से लेकर बीसवीं सदी प्रारंभिक पांच दशकों तक जनजागरण सामाजिक संस्थाओं के विकास से सामाजिक चेतना और 1930 से 1949 तक टिहरी रियासत के भारतीय गणराज्य में विलय तक राजनीतिक चेतना और घटनाओं पर प्रलेखित सामग्री का परिदृश्य इस प्रदर्शनी में उपलब्ध है.
उल्लेखनीय है कि पहाड़ के स्थानीय जननायकों ने जिस तरह कुली बेगार के उन्मूलन और वन अधिकारों की प्राप्ति के लिए असहयोग आन्दोलन किया उसकी सफलता ने उस दौर में उत्तराखण्ड को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया. बाद में समाज के वंचित व निम्न वर्ग ने भी अपनी सामाजिक, आर्थिक समस्याओं को मुखर करने तथा उनके समाधान पाने के लिए स्वाधीनता आंदोलन को मंच के तौर पर चुना. इस तरह के कुछ विशेष प्रसंगों की झलक भी दर्शकों को इस प्रदर्शनी में देखने को मिल रही है. यह प्रदर्शनी उन अनेक भूली बिसरी महिलाओं और महापुरुषों को भी जानने का अवसर दे रही है, जिन्होंने देश प्रेम के खातिर औपनिवेशिक प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाकर अपनी जान की बाजी तक लगानी पड़ी.