देहरादून. मकर संक्रांति हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है. इस दिन सूर्य, मकर राशि में प्रवेश करता है. उत्तराखंड में यह पर्व उत्तरायणी क नाम से मनाया जाता है. इस दिन गंगा नदी में स्थान करने से पुण्यलाभ की प्राप्ति होती है. उत्तराखंड में जो लोग गंगा नदी के किसी प्रयाग पर नहीं पहुंच पाते हैं वे अपने यहां की नदियों को पवित्र गंगा नंदियों के रूप में मान कर स्नान करते हैं.
कहा जाता है कि इस दिन खुद देवता धरती पर गंगा स्नान के लिए आते हैं. उत्तराखंड में इस दिन देव डोलियों को भी तीर्थस्थलों पर नदियों में स्थान कराने की परंपरा है. श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करने के लिए दूर दूर से नदियों के संगम या प्रयाग स्थलों पर उमड़ते हैं. बिष्णुप्रयाग, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग, सरयू-गोमती के संगम बागेश्वर के अलावा अन्य नदियों में लोग पहली रात जागरण कर सुबह स्नान करते हैं.
उत्तरकाशी में इस दिन से शुरू माघ मेले की शुरुआत
उत्तरकाशी में इस दिन से शुरू माघ मेले की शुरूआत होती है. स्नान और पूजा पाठ करने के बाद मकर संक्राति पर दान करने की भी मान्यता है. और कहीं कहीं दक्षिणा संक्रांति के नाम से भी मकर संक्रांति हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्व के रूप में मनाई जाती. इस दिन देश के कई इलाकों में पतंगबाजी होती है और लोग धूमधाम से साथ मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं. इस दिन तिल, गुड़, गजक और मूंगफली आदि बांटे जाते हैं और चाव से खाए भी जाते हैं. कुछ इलाकों में इस त्यौहार को खिचड़ी कहा जाता है तो दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाते हैं. नई फसल आने की खुशी भी इस त्यौहार का मजा दोगुना कर देती है. वैसे ये पुराने त्यौहार मुख्य तौर पर किसानों के त्यौहार होते हैं, आम जनता के त्यौहार होते हैं.
मकर संक्रांति बसंत आने का सूचक
आपको बता दें कि मकर संक्रांति के दौरान सूर्य, धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण होता है. ऐसा भी माना जाता है कि आज से मौसम थोड़ा गर्म होने लगता है और ये सूचक है कि अब बसंत बस आने ही वाला है.
कुमाऊं में घुगुतिया मकरैण, मकरैणी के नाम से भी
उत्तराखंड में इसे ‘उत्तरायणी’ कहा जाता है. कुमाऊं में पहाड़ में इसे घुगुतिया, पुस्योडि़या, मकरैण, मकरैणी, उतरैणी, उतरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्या त्यार, गढ़वाल में खिचड़ी संगंराद आदि नामों से जाना जाता है. सूर्य धनुर्राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे ‘मकर संक्रान्ति’ या ‘मकरैण’ कहा जाता है. सौर चक्र में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर चलता है, इसलिये इसे ‘उत्तरैण’ या ‘उत्तरायणी’ कहा जाता है. ‘उत्तरायणी’ पर्व पर उत्तराखंड की हर नदी में स्नान करने की मान्यता है.
घुगुतिया से जुड़ी पौराणिक कहानी
कुमाऊं क्षेत्रा में ‘उत्तरायणी’ के संदर्भ में कई पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं. इनमें एक कहानी यह है कि पुरातन काल में यहां कोई राजा था. उसे ज्योतिषयों ने बताया कि उस पर मारक ग्रहदशा है. यदि वह ‘मकर संक्रान्ति’ के दिन बच्चों के हाथ से कव्वों को घुघुतों का भोजन कराये तो उसके इस ग्रहयोग के प्रभाव का निराकरण हो जायेगा. लेकिन राजा अहिंसावादी था. उसने आटे के प्रतीकात्मक घुघुते तलवाकर बच्चों द्वारा कव्वों को खिलाया. तब से यह परंपरा चल पड़ी. इस तरह की और कहानियां भी हैं. फिलहाल ‘उत्तरायणी’ का एक पक्ष मान्यताओं पर आधारित है.
गढ़वाल में ‘मकरैणी’ के नाम से मनाई जाती है मकर संक्रांति
गढ़वाल में ‘उत्तरायणी’ को ‘मकरैणी’ के नाम से जाना जाता है. उत्तरकाशी, पौड़ी, टिहरी, चमोली में ‘मकरैणी’ को उसी रूप में मनाया जाता है, जिस तरह कुमाऊं मंडल में. यहां कई जगह इसे ‘चुन्या त्यार’ भी कहा जाता है. इस दिन दाल, चावल, झंगोरा आदि सात अनाजों को पीसकर उससे एक विशेष व्यंजन ‘चुन्या’ तैयार किया जाता है. इसी प्रकार इस दिन उड़द की खिचड़ी ब्राह्मणों को दिये जाने और स्वयं खाने को ‘खिचड़ी त्यार’ या खिचड़ी संक्रांत भी कहा जाता है.