मुंबई. मुंबई में फंसे उत्तराखंडियों की घर वापसी के लिए लाकडाउन 4.0 के बीच जागी उत्तराखंड सरकार पहली ही दो ट्रेनों के व्यवस्थित संचालन करने में ही फेल हो गई है. लाकडाउन के तीन चरणों में मुंबई और उत्तराखंड के सामाजिक संगठनों की बारंबार मांग के बाद जब सरकार ने आनन फानन में पहली ट्रेन 19 मई को मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनल से हरिद्वार के लिए चलाई तो सरकार के पास जिन लोगों को ट्रेन में हरिद्वार ले जाना था उनके नाम तक नहीं थे. जबकि सरकार ने लोगों की घर वापसी के लिए लिंक जारी कर रजिस्ट्रेशन करने के लिए कहा था. सरकार ने भी रोज अपने संदेशों में इन आंकड़ों का जिक्र किया कि फलां शहर से इतने लोगों ने गांव आने के लिए रजिस्ट्रेशन किये हैं. लेकिन जैसे ही मुंबई से उत्तराखंड के लिए पहली ट्रेन लगी सरकार का यह झूठ बेनकाब हो गया.
मुंबई में फंसे लोग जब अपने मोबाइल पर नियमों का पालन करते हुए बेसब्री से सरकार व अपने निकटवर्ती स्टेशनों से एसएमएस या फोन का इंतजार कर रहे थे, तब तक कई सामाजिक संस्थाओं के फोन घनघनाने लगे, जिसका पूरा फायदा ऊंची पहुंच रखने वालों ने उठाया और जिसकी जितनी ऊंची पहुंच थी, उसने उतनी ही ज्यादा संख्या में बिना किसी फारमल्टीज के “अपने” लोगों को इस ट्रेन से उत्तराखंड पहुंचाया. अपनी बहुप्रीक्षित ट्रेन से यात्रा करने से वंचित लोगों ने बताया कि गढ़वाल मंडल के लिए लगी इस ट्रेन में अधिकांश लोग कुमाउं मंडल के एक खास क्षेत्र से भेजे गए, जिसको लेकर गढ़वाल ही नहीं कुमाऊं के प्रवासियों में भी भारी नाराजगी है.
लोग अंदेशा लगा रहे हैं कि कुछ चंद समाजसेवियों के इशारे पर बिना रजिस्ट्रेशन वाले लोगों को स्पेशल ट्रेन से गांव ले जाने के लिए ही जानबूझ कर रजिस्ट्रेशन वालों की अनदेखी की जा रही है. मुंबई से चली दोनों ट्रेनों में इस पक्षपात की वारदात से महीनों से गांव जाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे लोगों की उम्मीदों को धक्का लगा है. इतनी बेसब्री के बाद अब लोग ठगे से महसूस कर रहे हैं. सरकार की लिंक जारी करने और पुलिस, मेडिकल की तमाम औपचारिकताओं को लंबी जद्दोजहद के बाद पूरी करने के बाद भी अब ट्रेन में कुछ खास लोगों को ले जाने को लेकर सरकार के प्रति जबरदस्त आक्रोश है. ट्रेन को लेकर हो रही राजनीति पर मुंबई के कई समाजसेवियों व सामाजिंक संगठनों ने भी कड़ी आपत्ति है.
दूसरी ट्रेन ने भी खोली सरकार की पोल
आज 22 मई को भी मुंबई से एक ट्रेन उत्तराखंड के कुमाउं मंडल के लालकुंआ के लिए वसई से लगी. इस ट्रेन के बारे में भी उत्तराखंड पुलिस के पेज पर अधिकृत जानकारी सुबह 10 बजे दी गई. जबकि मुंबई के उपनगरों से आम आदमी के लिए दो घंटे में वसई पहुंचना आसान नहीं है. इतने समय में लाकडाउन की स्थिति में तो बिल्कुल भी संभव नहीं. हैरत करने वाली बात यह है कि इससे पहले ही ऊंची पहुंच रखने वाले कुछ खास लोगों को इसकी जानकारी थी और वे 10 बजे से पहले ही अपने लोगों स्टेशन के आसपास ले गए थे. यहां तक कि कई लोगों को एक दिन पहले ही यहां के आसपास पहुंचा दिया गया था.
ठीक है सरकार, अभी नहीं 2022 तक तो गांव आएंगे!
कोरोना के दौर में प्रवासियों के साथ हो रहे इस व्यवहार पर लोग उत्तराखंड सरकार से पूछ रहे हैं कि जिस ट्रेन की जानकारी आपको भी नहीं, चंद लोगों को उस ट्रेन की जानकारी देकर फंसे लोगों के साथ ऐसा घिनौना मजाक क्यों किया जा रहा है? अगर लोगों को इस तरीके से ही उनके हाल पर छोड़ना था तो उस लिंक का क्या हुआ जो सरकार ने जारी की थी. संकट के दौर में बुरे फंसे प्रवासियों के लिए मुंबई से ट्रेन चलाने को लेकर जो राजनीति हुई है, उसने सरकार से लोगों की घर वापसी की उम्मीद ही नहीं ताेड़ी, बल्कि इस अव्यवस्था से गढ़वाल कुमाऊं के प्रवासियों की बीच गहरी खाई बनाने का काम किया गया है. सरकार के इस रवैये से प्रवासी निराश हैं और सरकार के भरोसे घर वापसी की उम्मीद छोड़ दी है. लोग अब राज्य सरकार को चुनाव में सबक सिखाने के मूड में हैं और यही कह रहे हैं ठीक है सरकार, अभी नहीं 2022 तक तो गांव आएंगे!