चमोली. आदि बद्री धाम के कपाट एक बार फिर श्रद्दालुओं के लिए खुल गए. महीने बंद रहने के बाद मकर संक्राति को लोक परंपरांओं और पूजा पाठ के बाद भगवान आदि बद्री के दर्शन अब 11 माह तक श्रद्दालुओं यहां कर सकेंगे.
इस अवसर पर स्थानीय महिलाओं ने पारंपरिक रूप से भगवान की स्तुति में लोकनृत्य किया. भगवान आदि नारायण आदि बद्रीनाथ मंदिर के कपाट पौष की संक्राति से एक महीने के लिए बंद रहते हैं और फिर मकर संक्राति पर पूजापाठ के बाद खोल दिए जाते हैं.
आदि बद्री चमोली जनपद में हल्द्वानी मार्ग पर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर दूर तथा चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर दूर है जो कि गैरसैंण जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है. भगवान आदिनारायण का धाम पूस महीने को छोड़ कर पूरे शीतकाल में भक्तों के लिए खुला रहता है और यहां श्रद्धालु भगवान आदिनारायण के दर्शन कर सकते हैं.
किंबदंती है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ पर उत्तराखंड आये पांडवों द्वारा किया गया. बताया जाता है कि मूलरूप से इस समूह में 16 मंदिर थे, जिनमें 14 अभी बचे हैं. प्रमुख मंदिर भगवान विष्णु का है जिसकी पहचान इसका बड़ा आकार तथा एक ऊंचे मंच पर निर्मित होना है.
एक सुंदर एक मीटर ऊंचे काली शालीग्राम की प्रतिमा भगवान की है जो अपने चतुर्भुज रूप में खड़े हैं तथा गर्भगृह के अंदर स्थित हैं. इसके सम्मुख एक छोटा मंदिर भगवान विष्णु की सवारी गरूड़ को समर्पित है.
समूह के अन्य मंदिर अन्य देवी-देवताओं यथा सत्यनारयण, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, चकभान, कुबेर (मूर्ति विहीन), राम-लक्ष्मण-सीता, काली, भगवान शिव, गौरी, शंकर एवं हनुमान को समर्पित हैं.
इन प्रस्तर मंदिरों पर गहन एवं विस्तृत नक्काशी है तथा प्रत्येक मंदिर पर नक्काशी का भाव उस मंदिर के लिये विशिष्ट तथा अन्य से अलग भी है.ऐसी मान्यता है की चारधाम यात्रा श्री आदिबद्री नाथ जी के दर्शन के बिना अधूरी है क्योंकि आदिबद्रीनाथ जी सबसे प्राचीन हैं और इसी कारण से प्रथम बद्री के नाम से भी जाने जाते हैं.