डुंडा. वैश्विक महामारी कोरोना ने पूर्व से चले आ रहे बने बनाए रोजगार के कई अवसर भी सीमित कर दिए हैं. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी देश के युवाओं से बारंबार आत्मनिर्भर भारत के लिए आत्मनिर्भर बनाने के लिए आह्वान कर रहे हैं. आत्मनिर्भर भारत की इस संकल्पना पर उत्तरकाशी के युवा श्री टीकाराम सिंह ने पहल शुरू कर दी है.
टीकाराम सिंह कोरोना लाकडाउन के कारण होटल बंद होने के कारण बैंगलुरू से गांव लौटे हैं. गांव में जिस दिन से पहुंचे, उसी दिन से एक एक घंटे का सही इस्तेमाल कर रहे हैं. जहां क्वारन्टाइन में बीज बम बनाकर जंगली जानवरों के लिए जंगलों में रोकने की पहल की, वहीं अब वे क्वारन्टाइन खत्म होते ही स्वरोजगार की मुहिम शुरू कर चुके हैं.
लोकल को बढ़ावा देने की पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लोकल को बढ़ावा देने की बात पर टीकाराम सिंह भी उत्तराखंड में स्थानीय स्तर पर होने वाले साग सब्जी, फसल उगाने पर जोर देने में जुट गए हैं. आजकल जो लेण्ग्ड़ा पहाड़ों में बड़ी मात्रा में होता है, उसकी सीजन के हिसाब से सब्जी बनती है. उसका उपयोग कर इसकी नई रेशिपी तैयार कर रहे हैं.
औषधीय दृष्टि से भरपूर है लेण्ग्ड़ा, सालभर कर सकते हैं इस्तेमाल
टीकाराम सिंह बताते हैं कि लेण्ग्ड़ा के बहुत फायदे हैं. लेण्ग्ड़ा का उपयोग सामान्यतः सब्जी बनाने में ही किया जाता है मगर अन्य देशों में लेण्ग्ड़ा की सब्जी के साथ-साथ अचार तथा सलाद के रूप में बहुत पसंद किया जाता है. कुछ प्रसिद्ध सालादों में लेण्ग्ड़ा को मुख्य रूप में प्रयोग किया जाता है. इस मुख्य उपयोग के साथ-साथ लेण्ग्ड़ा में उपस्थित मुख्य औषधीय तत्वों तथा प्रचुर मात्रा के मिनरल्स होने के कारण औषधीय दृष्टिकोण से भी जाना जाता है. जिसकी वजह से इसे परम्परागत रूप से विभिन्न बीमारियों के निवारण के लिये भी घरेलू उपचार में भी प्रयोग किया है. लिंगुडा फिलिपिन्स के दक्षिणी द्वीप में मुख्य रूप से पाया जाता है तथा फिलिपिनो सलाद, समुद्री आहार का मुख्य अवयव होता है.
टीकाराम सिंह बताते हैं कि पाहड़ों में यह सीजन के हिसाब से उगता है, लेकिन हम इसे सीजन में ही इस्तेमाल कर इसका सालभर पूरा उपयोग नहीं कर पाते हैं. अगर हमने इससे लोगों को जागरूक किया और अचार आदि बनाया तो साल भर तक हम इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. सुखा कर भी लेण्ग्ड़ा सालभर के इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं.
देश विदेश के पांचसितारा होटलों में मशहूर शेफ रह चुके टीकाराम सिंह ने पहाड़ी उत्पादों की बहुत सारी नयी रेसिपी ईजाद की हैं. टीकाराम सिंह ने लेण्ग्ड़ा फ्राई रईस, लेण्गुडा सूप, लेण्ग्ड़ा सोया चिल्ली आदि को पेशकर भारतीय व्यंजनों की महक सात समंदर पार तक बिखेरी है.
बुरांस का भी किया इस्तेमाल
बुरांस जो जंगलों मे पाया जाता है उसका नॉन अल्कोहलीक मोक्टैल, झंगौरा, बुरांस, फिर्नि मंडवा की इडली, डोसा, कण्डालि सूप,
भट्ट के कटलेट के रूप में पेश कर चुके हैं. पहाड़ी खाना पौष्टिक है, इसमें केवल प्रजेंटेशन को शामिल कर दें तो यह पंजाबी, गुजराती, मराठी, दक्षिण भारतीय खाने से भी अलग पहचान बना सकता है. सिंह ने कहा पहाड़ों के सबसे जादा शेफ दुनिया में हैं वे भी पहाड़ के लोकल जैविक उत्पादों को नया आयाम दे सकते हैं. टीकाराम सिंह खुद एक शेफ होने के नाते अपने पहाड़ के खाने क़ो विश्व पटल तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.
सरकार से सहयोग नहीं मिलने से कठिनाई
टीकाराम सिंह बताते हैं कि सरकार का सहयोग न होने के कारण कठिनाई जरूर हो रही है, परंतु जरूर 5 से 10 साल बाद इसका परिणाम मिलेगा. उन्होंने कहा कि अगर मन में करने का जज्बा हो तो पहाड़ों में होने वाले हर सीजनल फसल, उत्पाद का सदउपयोग कर आत्मनिर्भर बना जा सकता है.
जाडि संस्थान के श्री द्वारिका सेमवाल जी से मिली प्रेरणा
टीकाराम सिंह ने कहा कि जैसे आजकल गेहूं का सीजन है कच्चे गेहूं की उम्मी होती हैं, उसी पहाड़ी उम्मी की चाट बनायी जा सकती है. पहाड़ी फ्यूजन के तहत जैसे चाइनीज फास्ट फूड गाली गली में चलता है, वैसे पहाड़ी खाना भी फास्टफूड की तर्ज पर हर पार्टी, शादी, होटेल, रेस्टारेंट, फास्टफूड और फूड कोर्ट कैंटीन में बिके.
पहाड़ी फ्यूजन के इन व्यंजनों से एक तो स्थानीय अनाज की डिमांड बढ़ेगी और इससे पलायन पर रोक लग सकेगी. किसानों को भी रोजगार मिल सके, क्योंकि टीकाराम सिंह 8 साल दुबई मे 5 सितारा होटेल मे बतौर शेफ काम कर चुके हैं अब पहाड़ के लिए काम करना चाहते हैं उनको यह प्रेरणा जाडि संस्थान के श्री द्वारिका सेमवाल जी से मिली है जो गढ़ भोज पर काफी सारा काम कर रहें हैं और उनकी मुहिम रंग ला रही है. इन दिनों हमने 3.5 फीट ऊंचा धनिया भी उगाया है.