घनसाली. द्वारका पीठ और ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष की आयु में रविवार को ब्रह्मलीन हो गए. शंकराचार्य के निधन से उत्तराखंड देवभूमि के लोगों में भी शोक व्याप्त है. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के निधन पर व्यापार मण्डल घनसाली ने श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया. इस दौरान सनातन धर्म के ध्वज वाहक घनसाली के बुद्धिजीवियों ने शिक्षा जगत में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के योगदान को याद किया.
श्रद्धांजलि सभा में उद्योग व्यापार मण्डल अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र डंगवाल ने शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (Shankaracharya Swaroopanand Saraswati) जी को याद करते हुए कहा कि टिहरी जनपद के विकास खण्ड भिलंगना से स्वामी स्वरूपानंद जी का विशेष लगाव रहा है. कही बार वे जब घनसाली चमियाला आए और यहां संस्कृत भाषा का आभाव देखा तो चमियाला में 1982 में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी ने संस्कृत विद्यालय की स्थापना की, जो आज उच्च शिक्षा देने का काम कर रहा है.
डॉ. नरेन्द्र डंगवाल ने कहा, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती उच्च कोटि के विद्वान, वेद, उपनिषद, शास्त्रों के ज्ञाता थे. स्वामीजी ने संपूर्ण जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगाया. गरीबों, दलितों, जनजातियों की सेवा के लिए अनेक चिकित्सालय, संस्कृत पाठशाला सहित अनेक सामाजिक उपक्रम स्थापित किए. सनातन धर्म के ध्वज वाहक घनसाली के बुद्धिजीवियों व शिक्षा जगत और व्यापार मण्डल घनसाली ने स्व. स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को दी श्रद्धांजलि दी और इस मौके पर उनके परम शिष्य श्रीराम सेमवाल जी को भी किया याद किया.