रायपुर. छत्तीसगढ़ में उत्तराखंड समाज विकास समिति के तत्वावधान में बृंदावन हाल सिबिल लाइन में उत्तराखंड भाषा प्रसार समिति का कार्यक्रम संपन्न हुआ. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता उतराखण्ड समाज विकास समिति के संयोजक श्री हर्षवर्धन बिष्ट ने की.
इस अवसर पर डॉ. जलन्धरी ने कहा कि हम अपनी जड़ों से हट रहे हैं. यदि हम प्रवास में आकर मजबूत हुए हैं तो हमें पहाड़ में अपने गांव में अपनी माटी का भी संरक्षण भी करना होगा. उन्होंने गांवों में बंजर जमीन के प्रति आगाह करते हुए कि प्रवासियों की अपनी जन्मभूमि के प्रति ऐसी ही लापरवाही रही तो वह दिन दूर नहीं, जब आगामी सालों में सरकार द्वारा ऐसा भू-बंदोबस्त किया जाएगा कि जिसमें सारी बंजर भूमि को सरकार द्वारा अधिगृहीत कर दिया जाएगा. इसलिए हमें अपनी धरोहर को बचाने के लिए अपनी जड़ों की ओर जाना होगा, जिसमें मूल निवास प्रमाणपत्र के अलावा अन्य कई बुनियादी समस्याओं का समाधान भी आवश्यक है.
बोलचाल, लिखने-पढ़ने में प्रयोग हो बोली भाषा
उन्होंने कहा कि हम अपनी मातृभूमि से कोषों दूर आ गए परंतु आज हमारी अगली पीढ़ी हमारी बोली भाषा, बार-त्योहार, रीति-रिवाज को छोड़ती जा रही है. अपनी बोली भाषा को बचाने के लिए हमें उसे बोलचाल लिखने पढ़ने में प्रयोग करना होगा. इसके लिए हमारे पास उतराखण्डी भाषा का पहला प्रारूप पाठ्यक्रम मौल्यार है, जिसे गढ़वाली कुमाऊनी के समान शब्दों को समेकीकृत कर एक रोचक विषय तैयार किया है. इसके माध्यम से हम अपनी बोली भाषा का बोध अगली पीढ़ी को करवा सकते हैं.
जनगणना के अवसर पर करें उत्तराखंडी भाषा का उल्लेख
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चौदह बोलियां हैं जिनमें गढ़वाली कुमाऊनी को संविधान में सूचीबद्ध करने की मांग हो रही है. भारत सरकार की प्रतीक्षारत सूची में गढ़वाली 12वें और कुमाऊनी 22 नंबर पर हैं. यह दोनों उतराखण्ड की भाषाएं हैं यदि इन दोनों के समान शब्दों के आधार पर एक प्रतिनिधि भाषा की बात की जाय और उत्तराखंड समाज पूरे देश में जनगणना के अवसर पर अपनी मातृभाषा के बाद उत्तराखंडी भाषा का उल्लेख करे तो निशंदेह आंकड़ों के आधार पर हमारी भाषा दूसरे या तीसरे नंबर पर आ जाएगी, जिसे संविधान में सूचीबद्ध करने अधिक समय नहीं लगेगा. उसके बाद ही वह एक प्रतिष्ठित भाषा और फिर प्रादेशिक भाषा का स्थान प्राप्त करेगी.
प्रवासियों की घर वापसी के लिए नीति की मांग
इस अवसर पर श्री हर्षवर्धन बिष्ट ने कहा कि उत्तराखंड राज्य बने बाईस वर्ष हो चुके हैं परंतु समस्या जो पहले थी वह आज भी है. राज्य की राजधानी, भाषा, रोजगार, पलायन आदि के जंगली जानवरों द्वारा किए जा रहे जानमाल के नुकसान से सरकार बेखबर है. हम भी चाहते हैं कि सेवानिवृत्ति पर हम पहाड़ में अपने गांव में सकून से रहें परंतु सरकार ने प्रवासियों की घर वापसी के संबंध में कोई नीति ही नहीं बनाई है, जिसके लिए ठोस नीति की मांग की गई.
इस अवसर पर कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे. बैठक में उपस्थित कुछ मुख्य प्रबुद्ध व्यक्तियों में सर्व श्री रवीन्द्र प्रसाद हर्षवाल, मनोज भट्ट, सोबन सिंह रावत, सुभाष कुमार लखेड़ा, रोहिताश्व त्रिपाठी, सैनसिंह रावत, प्रकाश कांडपाल, जय सिंह रावत, नरेश बिष्ट, शेखर सिंह रावत, उत्तम सिंह रौथाण, डॉ. डी.एस. सामंत, आर.एस. भाकुनी, अनिल कुमार भट्ट, नीरज शर्मा, दीपक खंडूरी, एम.पी. खंडूरी, एम.एस. रावत, नवीन कुमार और श्रीमती रमा जोशी के अलावा कई लोगों की उपस्थित रही. मंच संचालन श्री हर्षवर्धन बिष्ट द्वारा किया गया.