देहरादून. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 हो जाने के बाद राज्य में नेताओं और पार्टियों की किस्मत एवीएम में बंद है. नतीजे 10 मार्च को आएंगे, लेकिन दोनों पार्टियों भाजपा और कांग्रेस में अपनी अपनी सरकार बन जाने की उम्मीद के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर अंदरूनी खींचतान चरम पर है.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 का जनादेश किस करवट बैठता है यह तो 10 मार्च को ही पर्दा उठेगा, लेकिन कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि राज्य में उनकी सरकार आ रही है और परिणाम से पहले सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कांग्रेस में ही बयानबाजी शुरू हो गई है. कांग्रेस चुनाव प्रचार के प्रमुख लीडर रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बयान के बाद कांग्रेस में अन्य नेताओं के भी दबी जुबान से बयान आने लगे हैं, कुछ हाईकमान पर फैसला छोड़ने की बात करने लगे हैं तो कुछ परिणाम के बाद निर्णय की बात करने लगे हैं.
इस सबके बीच हरीश रावत के बयान कि मुख्यमंत्री बनूंगा या घर बैठूंगा के बयान से जहां उनके मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी एकमात्र दावेदारी की ओर संकेत कर रहा है वहीं उनके इस बयान से राज्य में दलित मुख्यमंत्री देखने के इच्छुक लोगों की उम्मीदों को धक्का लगा है.
हरीश रावत ने चुनाव से पहले अपने बयान में कहा था कि वे राज्य में दलित मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं और ठीक इसके बाद उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने से हरीश रावत के बयान को इसी विश्वस्नीयता के रूप में देखा जा रहा था. तब ऐसा लग रहा था कि पंजाब को दलित मुख्यमंत्री देने के हिमायती हरीश रावत के इस बयान से 2022 में पहली बार उत्तराखंड को दलित मुख्यमंत्री मिल सकता है. लेकिन राज्य में चुनाव के बाद हरीश रावत का खुद मुख्यमंत्री बनने का सपना और कांग्रेस के अंदर परिणाम से पहले ही खींचतान में अब दलित मुख्यमंत्री देने की बात गायब होने से इसे आश्चर्य के रूप में देखा जा रहा है.
राज्य की जनता ने अपने मतदान से सत्ता का सिहांसन किसे सौंपा है और मुख्यमंत्री का ताज कौन पहनता है, यह 10 मार्च को साफ हो जाएगा, लेकिन कांग्रेस के अंदर की बयानबाजी से साफ है कि राज्य में दलित मुख्यमंत्री देने की बात सिर्फ चुनाव से पहले हरीश रावत जी का चुनावी जुमला था और इस दौड़ में हरीश रावत सिर्फ अपने को ही आगे रखना चाहते हैं.