मुंबई. गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी को लेकर जहां एक तरफ उत्तराखंडियों में जश्न है वहीं दूसरी तरफ गैरसैंण को स्थाई राजधानी नहीं बनाने को लेकर भी मुंबई के प्रवासियों ने अपनी राय रखी है. शिक्षाविद डा. योगेश्वर शर्मा धस्माणा जी ने अपनी प्रतिक्रिया में इसे उत्तराखंड सरकार द्वारा लोगों की भावना से खेलने वाला कदम बताया है.
डा. योगेश्वर शर्मा ने कहा कि गैरसैंण को पूर्णकालीन राजधानी के बजाय उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करना राज्य के हित में नहीं है. उत्तराखंड जैसे राज्य को दो राजधानी की जरूरत ही नहीं थी, पहले ही राज्य कर्ज में डूबा है. गैरसैंण को पूर्ण राजधानी का दर्जा देना चाहिए था. सरकार साहस नहीं दिखा पाई.
गैरसैंण को स्थाई राजधानी के रूप में देखना चाहते हैं उत्तराखंडी: श्री सुशील जोशी
भाजपा के कट्टर सर्मथक श्री सुशील जोशी, सचिव पनवेल शहर मण्डल ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. जोशी ने कहा कि जब उत्तराखंड की जनता गैरसैंण को राज्य की स्थाई राजधानी के रूप में देखना चाह रही हो तब सरकार द्वारा ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान पूरे पहाड़ को अपमानित करने जैसा है. जोशी ने कहा कि उत्तराखंड की सरकारों की गलत नीति व नीयत के आगे पहाड़ के लोग हमेशा ठगे जा रहे हैं.
सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर उत्तराखंड के आंदोलनकारियों के बलिदान व संघर्ष को अनदेखा किया है. जोशी ने कहा कि गैरसैंण को 12 महीने की स्थाई राजधानी बननी चाहिए थी. हकीकत यह है कि सरकार और अफसरों को देहरादून में ही रहकर ही केवल मैदानी क्षेत्रों का विकास करना है.
घर वापसी की बात करने वाली सरकार से अपेक्षा है कि वह पलायन और 19 सालों में खाली हुए पहाड़ को सही नीति दे.
गैरसैंण पर इतना खर्च के बावजूद सिर्फ कुछ दिनों की ही राजधानी बनाना पहाड़ के हितों के लिए ठीक नहीं है, इसलिए सरकार 22 के चुनाव से पहले गैरसैंण को पूर्णकालिक राजधानी बनाए. श्री जोशी ने कांग्रेस पर भी हमला बोला है और कहा कि जब सरकार थी, तब कांग्रेस ने भी राजधानी की बात पर टालमटोल ही की.
कुछ खास बातें
महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर की भी 2-2 राजधानियां हैं. जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है.
* गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी 13 बार अनशन पर बैठे थे. बेनताल (आदिबदरी) में उनका आखिरी अनशन 38 दिन तक चला था. इसी अनशन के दौरान अगस्त 2004 में उनकी जान चली गई थी.
* गैरसैंण उत्तराखंड के चमोली जिले में आता है और इसे नगर पंचायत का दर्जा हासिल है.
* गैरसैंण नाम का शब्द दो स्थानीय बोली के शब्दों से मिलकर बना है. गैर और सैंण. गैर का मतलब कुमाऊंनी और गढ़वाली दोनों भाषाओं में गहरे स्थान को कहा जाता है और सैंण शब्द का अर्थ मैदानी भू-भाग होता है. इस तरह से इसका अर्थ गैरसैंण यानी गहरे में समतल मैदानी इलाका.
* ब्रिटिश काल में 1839 में इस क्षेत्र को कुमाऊं से स्थानांतरित करते हुए नवस्थापित गढ़वाल जिले में शामिल कर लिया गया. बाद में 20 फरवरी 1960 को चमोली के रूप में नया जिला बना दिया गया और गैरसैंण इस जिले के तहत आ गया.
* गैरसैंण की देहरादून से दूरी करीब 260 किलोमीटर है. जबकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी 450 किलोमीटर है. वहीं हरिद्वार से यहां की दूरी 240 किलोमीटर बैठती है.
* चमोली जिले में पड़ने वाला गैरसैंण दुधाटोली पहाड़ी पर स्थित है. यहीं पर रामगंगा का उद्भव हुआ है. भौगोलिक तौर पर यह इलाका गढ़वाल और कुमाउं के बीच में पड़ता है.
* गैरसैंण क्षेत्र में स्थानीय तौर पर गढ़वाली और कुमाऊंनी दोनों बोली बोली जाती हैं.
* 2011 की जनगणना के अनुसार गैरसैंण तहसील की आबादी 62,412 है, जिसमें 28,755 पुरुष और 33,657 महिलाएं शामिल हैं. जबकि साक्षरता दर 78.66% है.
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