डुण्डा. उत्तराखंड में जब जब कोई आपदाएं आती हैं सरकार भी तब ही जागती हैं. बरसात के समय उफनते नदी नालों से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नुकसान का जायजा लेकर उस समय तत्कालिक सक्रियता दिखाकर फिर अगली बाढ़ आने तक उन घटनाओं को सरकारें भी भूल जाती हैं. बात सिर्फ उत्तराखंड में किसी एक दल की सरकार की नहीं है, पिछले 20 सालों में राज्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों सत्ताधारी सरकारों से पहले की भी है.
ग्राम सभा ठाण्डी डुण्डा ब्लॉक जिला उत्तरकाशी की कन्तुर नामक गाड जो दो गांव के लोगों को संपर्क से जोड़ती है. ठाण्डी और जालन्ग जहां पर उत्तरप्रदेश की सरकार के समय जो पुल लगा था, वो 1994 की बाढ़ से बह गया था, जिसके कारण ग्रामीणों क़ो बहुत समस्या का सामना करना पड़ता है. बरसात में जाल्न्ग से ठाण्डी जाने के लिए बहुत लंबी दूरी नापने पड़ती है और कई बार लोग इस दूरी से बचने के लिए व जल्दी के कारण नदी पार कर हादसे क़े शिकार भी हो जाते हैं. ठाण्डी वालों खेत जालन्ग में हैं और जालन्ग वालों क़े खेत ठाण्डी में हैं. जालन्ग में जूनियर स्कूल भी होने के कारण बरसात के समय यहां के बच्चों क़ो भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बरसात में हालात यह हैं कि दो गांवों का संपर्क आपस में कट जाता है, या बहुत दूरी नाप कर जरूरी काम निपटाने पड़ते हैं.
94 के बाद राज्य बना, लेकिन एक पुल नहीं बन सका
स्थिति यह है कि 94 के बाद राज्य बना, लेकिन एक पुल नहीं बन सका. उत्तर प्रदेश सरकार से उम्मीद खो बैठे ग्रामीणों को उम्मीद थी कि राज्य निर्माण के बाद उनकी सरकार पुल बनाकर ग्रामीणों की इस समस्या का समाधान कर लेगी, किंतु इन 20 सालों में भी यहां सिर्फ वादों के अलावा नदी पर पुल नहीं बन सका.
ऐसा नहीं है कि यह बात यहां के जनप्रतिनिधियों को पता नहीं है, वे हर चुनाव में इस समस्या के समाधान का वादा जरूर करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद जैसे नदी का पानी कम होता है, वे भी भूल जाते हैं. कई कई चुनाव आए गए लेकिन अभी तक पुल निर्माण नहीं हो सका. ग्रामीणों ने और जनप्रतिनिधियों ने कई ज्ञापन भी दिए हैं. लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला है अब क्षेत्र के लोगों ने इस पुल निर्माण के लिए युवा उक्रांद के नेतृत्व में एक बार फिर अपनी मांग रखी है. युवा उक्रांद उत्तरकाशी के श्री टीकाराम सिंह ने बताया कि अगर यह पुल नहीं बना तो क्षेत्र के लोगों को आंदोलन के लिए बाध्य होना पढ़ेगा.