ऋषिकेश. उत्तराखंड में दीपावली त्यौहार के 11 दिन बाद इगास दीपावली मनाई जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में इगास बग्वाल कहा जाता है. इसमें दीयों और पटाखों की जगह पर भैला खेला जाता है, जो कि एक पारंपरिक रिवाज है. इगास बग्वाल को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं और कहानियां हैं.
पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के बनवास के बाद अयोध्या पहुंचने पर लोगों ने दिये जलाकर उनका स्वागत किया और उसे दीपावली के त्यौहार के रूप में मनाया, लेकिन कहा जाता है कि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के पहुंचने की खबर दीपवाली के ग्यारह दिन बाद मिली और इसीलिए ग्रामीणों ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए ग्यारह दिन बाद दीपावली का त्यौहार मनाया.
गढ़वाल में इगास बग्वाल के दिन लकड़ी और बेल से भैला बनाया जाता है और स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भैला जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है. जो लोग दीपावली में घर नहीं आ पाते हैं, वो इगास बग्वाल के त्यौहार में घर पहुंचते हैं और दीपावली का त्यौहार मनाते हैं.
आवाज़ संस्था ऋषिकेश के डॉ. सुनील दत्त थपलियाल बतातें हैं कि अपनी अलग संस्कृति और परंपराओं की एक अलग पहचान हैं, लेकिन मॉर्डनाइजेशन के इस युग में धीरे-धीरे लुप्त हो रही संस्कृति और परंपराओं को बचाने की जिम्मेदारी हमारी नई पीढ़ी की है, जो कि धीरे धीरे आधुनिकता के इस दौर में इसे भूलते जा रही हैं. ऐसे में अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजोय रखने के लिए हमें कोई अहम कदम उठाने की जरूरत है ताकि गढ़वाल की अपनी अलग पहचान कायम रह सके.