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चतुर्थी की वो रात थी, कार्तिक की सौगात थी,
चांद से मिला था चांद, कल की ही बात थी।
चांद की वो चांदनी, आसमां में चमक रही,
धरा की चाँद आज, छत में महक रही।।
करके साज शृंगार, चाँद को निहार रही,
सजा कर थाल दीप, तमस भगा रही।
गगन का चांद नित, रातभर चमकता,
पर ना जाने आज क्यों, मेघ संग छुपता।।
दोनों चांद जब मिले, धरा के चाँद ने कहा,
मेरा चांद तो संग है, तेरा किधर गया।
तारे भी हैं मात संग, ढूंढते सब तात को,
जिसकी है तू चाँदनी, पूछते हैं उसको ।।
चांदनी वो चुप रही, कुछ भी न कह सकी,
मन ही मन विरह, वेदना कह गयी ।
चाहता वह भी मुझे, मन सदा ही साथ है,
मिल नहीं पाते कभी, ना जाने क्या बात है।।
रातभर जागकर, ढूंढती हूं दिनकर,
कमी कहाँ है प्रेम में, पूछा यूं लजाकर।
क्या उपाय तू करती, कौन सा व्रत रखती,
पिया रातदिन संग, अपने तू रखती।।
संबंध सात जन्म का, मुझे मिला वरदान,
रहूँ सुहागन सदा, सजी रहे मांग।
भूख प्यास सहकर, करवा चौथ रखती,
देखकर बस तुझे, आरती उतारती।।
पाना है तुझे सजन, रातभर तू ठहर,
भोर जब वो आएगा, तू मिलाना नजर।
भंग की तरंग सम, मन में भर उमंग,
अपनी किरण संग , चाँदनी दे तू रंग।।
देखकर तप तेरा, शीतलता वो लाएगा,
पाने को वो तुझे सदा, छुपकर आएगा।
फिर कहेंगे ये हम, वो क्या चाँदनी रात थी,
पिया संग हम तुम, क्या सुहानी बात थी।।
करवा चौथ के उपलक्ष में उस मातृशक्ति को विशेष नमन, जिसने गत दो-तीन दशक से हिंदुओं के दीपावली, होली व करवा चौथ आदि समस्त धार्मिक त्योहारों, परम्पराओं व रीति-रिवाजों को समाप्त करने का षड्यंत्र रचने वाले भ्रमित सेकुलरों के अनर्गल दुष्प्रचार को निष्प्रभावी बनाकर अपने सनातन धर्म को प्रतिष्ठापित रखा है– डॉ. राजेश्वर उनियाल