माँ जिसने मुझे रचा उस पर मैं क्या रचना बोल सकती हूँ… माँ वो जिसका कोई एक दिन नहीं हर दिन होता है… माँ भगवान का रूप है… जब ईश्वर ने देखा की वो हर जगह नहीं पहुँच सकते तो उन्होंने हर घर एक माँ भेजी… जाने अनजाने ना जाने कितनी बार हम माँ का दिल भी दुखाते हैं पर वो कभी हमारा दिल नहीं तोड़ती, आप अभाव में रहती है पर हमे सब सुविधाएँ देती है. एक माँ ही तो है जो हमे निस्वार्थ प्रेम करती है. अपना सम्पूर्ण स्नेह हम पर उड़ेल देती है. माँ एक शब्द नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड है. माँ के वश हो तो भगवान विष्णु भी कृष्ण अवतार ले माता यशोदा को कई बाल लीलाएँ दिखाईं और माँ के वश हो त्रिपुरारी उनकी प्रेम की डोर से ओखली संग बंध गये. माँ के आशीर्वाद में ही सम्पूर्ण विश्व की शक्ति है. माँ को एक दिन मे नहीं बांध सकते. एक युग मे नहीं बाँध सकते माँ प्रेम और स्नेह की बहती अविरल धारा है, जिसको बहते रहना है और अपने बच्चों को पोषित करते रहना है. माँ किसी समय सीमा मे बांधना पृथ्वी की गति को बांधने के समान है. हर दिन माँ दिवस है. दुनिया की सभी माओं को मेरा प्रणाम.
जननी और जन्मभूमि जयतु, बाल्मिकी रामायण में एक संदर्भ है जहाँ राम जी लक्ष्मणजी को कहते हैं-
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
अनुवाद : लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है।
विजया जी की कलम से आज कुछ पंक्तियाँ भी…….
कुछ दिल ने कहा तुम तो नहीं पर मैं भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
परछाइयों से डरने वाली छूट गई माँ
अब नई विजया हूँ तुम्हारी मैं माँ
रुठना जैसे अब भूल ही गई हूँ माँ
ज़िद्द क्या होती है याद नहीं अब मुझे माँ
सबकी ज़िद्द सुन पूरी करने लगी हूँ माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी ही जैसी हूँ माँ
बिंदास हँसती थी खिलखिलाकर कभी माँ
अब थोड़ा गम्भीर सी भी रहने लगी हूँ माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी ही जैसी हूँ माँ
थकती नहीं रुकती नहीं अब मै भी कभी माँ
करती हूँ पूरी सबकी कही मनमानी माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
तुमने कभी कहा नहीं जीवन सत्य माँ
मैने भी कहाँ जाना ये गूड़ रहस्य माँ
मुश्किल बहुत ही है नारी जीवन माँ
सहज सीख रही हूँ अब धीरे धीरे माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
अभी बाकी है बहुत कुछ सीखना माँ
अधपका अधकचरा सा है अभी मेरा ज्ञान माँ
धीरे धीरे पक पक परिपक्व हो रही हूँ मैं माँ
अनुभवों के साँचे मे ढल ढल रही हूँ मैं माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
सत्य से दूर तुम सुनाती थीं परियों की कहानी माँ
बंधनो से मुक्त सपनो के राजकुमार की बातें माँ
अब समझने लगी हूँ सपने और सच का अन्तर माँ
हक़ीक़त की दुनिया सपनो से नहीं बनती माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
तिल तिल दिल जला, जलता है घर का दिया माँ
समझने लगी हूँ धीरे धीरे कुछ कुछ अब माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
तुम्हारी बुझी हुई हंसी का वो दबा राज माँ
याद आता है तुम्हारा मुझे यूँ प्यार से देखना माँ
खुश हूँ तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
सीख गई हूँ अब सबकी खुशी मे खुश रहना माँ
माफ करना मेरी अनगिनत शरारतों को तुम माँ
अनजाने में कहीं गईं चंचल बातों को तुम माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ
तू कुछ सीखती ही नहीं अब ना ये कहना माँ
अब तुम्हारी गुड़िया भी माँ हो गई है माँ
माँ क्या होती है वो दर्द जान गई है माँ
खुश हूँ तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ।
एहसासों में लिपटी तुम्हारी ही परछाई हूँ माँ
तुम तो नहीं पर मै भी तुम्हारी जैसी हूँ माँ।