एक विश्वास, एक आस्था एक अपनत्व का नाम है मां जगदी. ठिठुर पूस के बर्फीले महीनों में जब क्षेत्र में कोई विशेष तीज-त्यौहार नहीं होते, तब बैणी-धियाणी अपने मैतियों से मिलने को व्याकुल हो जाती हैं, कहते हैं इसी व्याकुलता को दूर करने वास्ते जगदी मां ने अपने भक्तों से अपनी जिस पूजा का, जिस मेले का आयोजन करने को कहा उसे ही नौज्यूला हिन्दाव की ‘जगदी जात’ कहते हैं.
देवी-देवता हों या ऋषि-मुनि लगभग सभी का उद्गम स्थल, सभी का तपोस्थल, गंगा जी का स्त्रोत प्रदेश, देवभूमि हमारा उत्तराखंड. इसी उत्तराखंड में बसा है नौज्यूला हिन्दाव, जिसे अपनी ममता के आंचल में समेटे खड़ी है मेरी इस मातृभूमि की रक्षपाल मां जगदी. बाल्यकाल गांव में विताये अल्प समय की खुद (यादें) मिटाये नहीं मिटती हैं. उस वक्त मेरी हिन्दाव में मुख्य दो ही मेले होते थे- हुलानाखाल का थलु और जगदी की जात, दोनों में खूब भीड़-भाड़ होती थी. देश-प्रदेशों से लोगों का झुण्ड-का- झुण्ड आता था. नाना-नानियों, मामा-मौसियों का लाडला उस भीड़ में कहीं खो न जाय, इसलिए मुझे इन मेलों में नहीं जाने दिया जाता था, पर फिर भी एक बार जिद करके मैं अपनी मौसी के साथ नये कपड़े पहनकर, लैणी- पंगरियाणा के ढोल-दमाऊं, निशाण, तुरी-भंकोरों के साथ मां जगदी के स्थान शिलासौड़ पहुंच ही गया, जहां मुझे पहली बार एक बड़े आकार की शीला (पत्थर) के ऊपर मां जगदी के मंदिर के मां की ढोली के दर्शन हुए. साथ ही मेले में विभिन्न प्रकार का नाच, ढोल-दमाऊं की थाप पर देखने को मिला. फिर समय ने करवट बदली, हमारे पिताजी हम दोनों भाईयों को हजारी मां के साथ मां मुम्बादेवी की स्थली, मुंबई ले आये. परदेश में अपने गांव, अपने सहपाठियों, अपने देवी-देवतों, अपने लोगों की खुद वर्षों तक सताती रही. पर बचपन के संस्कार हमेशा साथ रहे.
यह भी पढ़ें… 27 और 28 दिसंबर को होगी जगदी की जात
”मां जगदी” के नाम के स्मरण से एक शक्ति की अनुभूति
मां-बाप, बड़ों का आशीर्वाद तथा ”मां जगदी” के नाम के स्मरण से एक शक्ति की अनुभूति होती है. मन में एक आस्था, एक विश्वास जागता है, जिससे आगे बढऩे की प्रेरणा मिलती है. लगता है कि सच्चे मन से हम जिस काम पर लगेंगे मां जगदी उस काम में हमें सफलता जरूर देगी. हमारी अराध्य देवी ‘मां जगदी” परम चमत्कारी है. वह अपने हर भक्त के मन की बात को खूब जानती है, ऐसी एक घटना मेरे साथ भी हुई. मैं अपने परमपूज्य आदरणीय श्री माधवान्द भट्टï जी द्वारा निर्मित फिल्म ”सिपैजी” जिस फिल्म को अभिनय के साथ-साथ मैंने खुद लिखा भी है, की शूटिंग ऋषिकेश में कर रहा था. सिपैजी फिल्म की शुरुआत ही जगदी जात से लौटते बाप-बेटे के सीन से होती है, जो जगदी के चमत्कार पर आधारित है. फिल्म की शूटिंग अपने अंतिम पढ़ाव पर थी. पर मन के एक कोने से काश की आवाज आती थी कि काश हम नौज्यूला हिन्दाव में मां जगदी करके यहां के भी कुछ दृश्यों का फिल्मांकन ”सिपैजी” में करवाते. एक दिन की शूटिंग में दो शख्स सुबह से ही शूटिंग देखते हुए मेरी तरफ भी इशारा कर रहे थे. शूटिंग खत्म होने पर वह दोनों महानुभव मेरे पास आकर पूछने लगे, कहां के हो, मेरा परिचय देने पर वह दोनों खुश हुए, बोले हम पहचान तो गये पर असमंजस में थे, फिर उन्होंने प्रश्न किया जगदी के यहां नहीं करोगे शूटिंग?
मैंने कहा ”जगदी नि चांदी मेरा ख्याल-सी त मिन क्य कन. उनमें से जो भाई हुकमसिंह कैन्तुरा थे, कहने लगे कि ऐसा करो कि हम कल जा रहे हैं, तुम परसों टीम के साथ आ जाना, फिर पता नहीं क्या हुआ, मैं पहली बार अपने फिल्म निर्माता आदरणीय भट्टïजी की आज्ञा की अवेहलना करके अपनी टीम को नौज्यूला की तरफ ले गया. रात की एक बजे जगदीगाड पहुंचे. पूरी टीम दिन भर बिना खाये-पिये थी और रात को भी बिना शिकायत के खाये-पिये जगदीगाड पर बस में रात गुजारी और दूसरे दिन ही शूटिंग के लिए तैयार हो गई. मां जगदी की कृपादृष्टि से चार दिन की शूटिंग क्षेत्र में सही ढंग से संपन्न हुई.
मैं आभारी हूं कैन्तुरा भाईसाहब का, श्री कुंवरसिंह नेगी जी का और पूरे हिन्दाव नौज्यूला के अपने समस्त बुजुर्गों, भाई-बहनों, बच्चों एवं फिल्म की पूरी टीम का, जिन्होंने मुझे पूर्ण सहयोग दिया. मां जगदी पर आधारित आयोजनों में शामिल होना किसी जगदी भक्त के लिए एक सुनहरा अवसर से कम नहीं है. इसके साथ ही मां जगदी का आशीर्वाद रहा तो शीघ्र ही मां जगदी के चमत्कार की फिल्म भी आप सभी के सामने लाने की कोशिश करूंगा.
क्रमश: