वाशिंगटन. उत्तराखंड एसोसिएशन आफ वाशिंगटन (Uttarakhand Association of Washington) के तत्वाधान में अमेरिका में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडी सामूहिक रूप से 12 नवंबर को पहाड़ी बग्वाल-ईगास (egas) मनाएंगे. यह जानकारी आईटी विशेषज्ञ श्री सचिदानंद सेमवाल (IT Specialist Mr. Sachidanand Semwal) ने दी है.
श्री सेमवाल ने बताया कि वे पिछले कई सालों से दुनिया के विभिन्न देशों में रहने वाले उत्तराखंडी मूल के लोगों के साथ पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े पर्व सामूहिक रूप से मना रहे हैं. कोरोना काल में थोड़ा व्यवधान हुआ लेकिन एक बार फिर अब अपने लोक संस्कृति के पर्व पहाड़ी बग्वाल-ईगास को इस बार अमेरिका में भव्य रूप से मनाने का निर्णय लिया गया है. यह आयोजन वाशिंगटन में शाम 7.30 से 11 बजे तक होगा, जिसमें उत्तराखंडी खानपान और लोक संगीत के साथ इगास मनाई जाएगी.
श्री सचिदानंद सेमवाल (Sachidanand Semwal) ने कहा कि इस बार हम लोग अमेरिका वाशिंगटन के सीएटल शहर में अपनी ईगास मना रहे हैं, जिसमें हम पहाड़ी खान-पान व उत्तराखंडी संस्कृति से जुड़े आयोजन करेंगे. श्री सेमवाल ने कहा कि यह गर्व की बात है कि हमारी उत्तराखंडी संस्कृति और हमारे खान पान आज विश्व भर में प्रचलित हो रहे हैं और हमारी आने वाली पीढ़ी भी पौराणिक संस्कृति से जुड़ रही है. उन्होंने कहा, यह हमारा सौभाग्य है कि हमें यह अवसर मिला कि हम लोग अपनी देव भूमि के लोगों के साथ मिलकर अमेरिका में भी पहाड़ी लोक संस्कृति और त्यौहारों को एकसाथ सेलिब्रेट कर रहे हैं.
इस कार्यक्रम के मुख्य आयोजकों में टिहरी जनपद के भिलंग पट्टी के मलेथा गांव के मूल निवासी श्री सचिदानंद सेमवाल जी के साथ अमेरिका में रहने वाली उत्तराखंड मूल की कई जानी मानी हस्तियां है, जिनमें सिंगधा बोरा (Snigdha Bora), विनीत रावत (Vineet Rawat), पल्लवी रावत (Pallavi Rawat), मनीष (Manish Dalakoti) आदि लोग प्रमुख हैं. यह सभी प्रवासी उत्तराखंडी अपने पुरुषार्थ और कौशल से अमेरिका जैसे देशों में लम्बे समय से कई प्रतिष्ठित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं.
सेमवाल जी ने ख़ुशी जताई कि अपनी लोक संस्कृति और पौराणिक धरोहर को जिंदा रखने के लिए उत्तराखंडी समाज के लोग विदेशों में भी उत्साहित हैं और वे पहाड़ की लोक संस्कृति के पर्वों को अपनों के साथ मनाने इस आयोजन से जुड़ रहे हैं. उन्होंने कहा, लोक संस्कृति के संरक्षण से जुड़े ऐसे आयोजनों के जरिए देश से सात समंदर पार बस चुकी नई पीढ़ी में हमारे पहाड़ की संस्कृति, तीज त्यौहार और अपनत्व की बुनियाद मजबूत करेगी.