घनसाली. देवभूमि उत्तराखंड (Devbhoomi uttarakhand) के ग्रामीण क्षेत्रों में पांडवों (Pandav) के पूजन की सदियों पुरानी सनातन धर्म की पताका आज भी बड़े ही हर्षोंल्लास के साथ लहराई जा रही है. इसी कड़ी में इन दिनों उत्तराखंड (uttarakhand) के जनपद टिहरी के भिलंगना ब्लाक (Bhilangana block) के ग्राम सभा पंगरियाणा (Pangariana) में ग्रामवासियों द्वारा पांडव लीला (Pandav leela) का मंचन किया जा रहा है.
यहां 18 दिवसीय पंडर्वात का आयोजन बड़े ही धूमधाम से किया जा रहा है. उत्तराखंड में पांच या तीन वर्षों के अंतराल पर ग्रामीण क्षेत्रों जगह जगह गांववासी अपने ईस्ट देवों पांच पांडवों का पूजन सामूहिक रूप से करते हैं. पिछले दिनों ग्रामसभा लैंणी में पांडवलीला व चक्रव्यूह का रंगारंग मंचन उत्साह के साथ किया गया था. इसके बाद आजकल ग्रामसभा पंगरियाणा में पांडव लीला पंडवार्त के जरिए पंडो देवों की आराधना की जा रही है.
पंगरियाणा पांडव लीला आयोजन समिति ने इस बार आयोजन को और भी भव्य बनाने के लिए 30 जनवरी और 31 जनवरी को महाभारत के गरुड व्यूह (Garud vyoh) रचना के मंचन करने का निर्णय लिया है. पांडव लीला आयोजन समिति पंगरियाणा के युवा इस बार बड़ी संख्या में देश विदेश से अपने पांडव देवताओं के पूजन के लिए गांव लौटे हैं और इस बार पांडव लीला में 30 जनवरी और 31 जनवरी को पांडव खली पंगरियाणा में भव्य गरुड व्यूह (Garud vyoh) की तैयारी की जा रही है. क्षेत्र के लोगों ने बताया कि इस बार यह आयोजन भव्य होगा और महाभारत युद्ध की अनेक व्यूह रचनाओं में से पहली बार यहां गरुड व्यूह का मंचन देखने लायक होगा. पंगरियाणा में गरुड व्यूह की संकल्पना उत्तमसिंह नेगी और श्रीमती खुशबू नेगी की है. जिसे साकार करने में पंगरियाणा के युवा हर बात का बारीकी से अध्ययन में जुटे हैं.
जानें क्या है गरुड़ व्यूह
उल्लेखनीय है कि गरुड़ व्यूह का उल्लेख पौराणिक ग्रंथ महाभारत (Mahabharata) में हुआ है। इस व्यूह की रचना द्रोणाचार्य (Dronacharya) ने की थी। महाभारत युद्ध (Mahabharata war) के समय पितामह शान्तनु कुमार भीष्म ने धृतराष्ट्र पुत्रों को विजय दिलाने की इच्छा से महान ‘गरुड़ व्यूह’ की रचना की।
भीष्म उस व्यूह के अग्रभाग में चोंच के स्थान पर खड़े हुए थे। आचार्य द्रोण और यदुवंशी कृतवर्मा दोनों नेत्रों के स्थान पर स्थित हुए। यशस्वी वीर अश्वत्थामा और कृपाचार्य शिरोभाग में खड़े हुए। इनके साथ त्रिगर्त, केकय और वाटधान भी युद्धभूमि में उपस्थित थे। भूरिश्रवा, शल, शल्य और भगदत्त- ये जयद्रथ के साथ ग्रीवाभाग में खड़े किये गये। इन्हीं के साथ मद्र, सिधु, सौवीर तथा पंचनद देश के योद्धा भी थे।
अपने सहोदर भाइयों और अनुचरों के साथ राजा दुर्योधन पृष्टभाग में खड़ा हुआ। अवन्ति देश के राजकुमार बिन्द और अनुबिन्द तथा कम्बोज, शक एवं शूरसेन के योद्धा उस महाव्यूह के पुच्छ भाग में खड़े हुए। मगध और कलिंग देश के योद्धा दासेर के गणों के साथ कवच धारण करके व्यूह के दायें पंख के स्थान में स्थित हुए। व्यूह में कारूष, विकुंज, मुण्ड और कुण्डीवृष आदि योद्धा राजा बृहद्बल के साथ बायें पंख के स्थान में खड़े हुए थे।
महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह, वज्र व्यूह, क्रौंच व्यूह, अर्धचन्द्र व्यूह, मंडल व्यूह, चक्रशकट व्यूह, मगर व्यूह, औरमी व्यूह व श्रीन्गातका व्यूह जैसी व्यूह रचनाओं का उल्लेख मिलता है. उत्तराखंड की पांडव लीलाओं में समय समय पर इन व्यूह रचनाओं का मंचन किये जाते रहे हैं, जिसमें चक्रव्यूह, चक्रशकट व्यूह (कमल व्यूह) ज्यादातर किए आते रहे हैं.