नवी मुंबई। मुंबई कौथिग 2024 के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के इतर देव भूमि स्पोर्ट्स फाउंडेशन और उत्तराखंड राज्य विज्ञान और तकनीकी परिषद के संयुक्त तत्वावधान में उत्तराखंड भवन, वाशी नवी मुंबई में उतराखंड के लिए व्याकरण सम्मत मानक भाषा को लेकर भी चिंतन किया गया। इस सम्मेलन में देश के विभिन्न प्रदेशों में काम करने वाले उत्तराखंड मूल के विद्वान, वैज्ञानिक, साहित्यकार, संगीतकार आदि कई लोगों ने भाग लिया। इस दौरान उत्तराखंडी भाषा के संबंध में चर्चा की गई।
उत्तराखंडी भाषा न्यास से डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी ने कहा कि भाषा रोजगार का एक साधन है, किंतु पिछले 24 वर्षों से भाषा के पक्ष में सरकार कुछ नहीं कर पाई। उन्होंने उतराखंड के लिए एक प्रतिनिधि भाषा पर काम करने की बात रखी। उन्होंने खड़ी बोली में कई लोकभाषाओं के शब्दों से युक्त साहित्यिक भाषा हिंदी के आरंभिक इतिहास के संबंध में बताया कि हमें भी उतराखंड की भाषा के लिए गढ़वाली, कुमाऊंनी जौनसारी आदि लोकभाषाओं के साहित्य को आधार मानकर काम करना चाहिए। डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी ने कहा कि हमें लोकभाषा और भाषा में अंतर को जानना चाहिए।
गढ़वाली, कुमाऊंनी लोकभाषाएं हैं, जिन पर व्याकरण के नियमों का प्रयोग नहीं किया जाता है। लोग स्वछंद रूप से ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग करते हैं। जिनके अर्थ का अनर्थ हो जाता हैं। उन्होंने उतराखंड के लिए व्याकरण सम्मत मानक भाषा की बात की और इस पर सरकार को काम करने की आवश्यकता बताई। प्रो. दुर्गेश पंत ने इस पर कहा कि यह एक गंभीर विषय है जो उत्तराखंड की एकरूपता के लिए आवश्यक है। इस बैठक में शिरकत करने वालों में उत्तराखंड सरकार के प्रतिनिधि प्रो. दुर्गेश पंत के साथ भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के कई वैज्ञानिक व विद्वानों ने मंथन किया। इस दौरान डीआईजी रविन्द्र सिंह रौतेला, श्री प्रवीन सिंह ठाकुर, लखनऊ से श्रीमती सुषमा खर्कवाल, गणेश दत्त जोशी, श्रीमती श्रद्धा जोशी, भूपेन्द्र चंद, मोहन सिंह सेजवार, बी. के. सावंत, पत्रकार गोविंद आर्य, कल्याण सिंह, गोविंद सिंह, उत्तराखंडी भाषा न्यास से सर्वश्री नीलांबर पांडेय, चामू सिंह राणा, पृथ्वी सिंह केदारखंडी, सुल्तान सिंह तोमर आदि मौजूद रहे।
रोजगार के लिए भाषा बन सकती है बड़ा हथियार
तो इस दौरान डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी ने सम्मेलन में कहा कि उत्तराखंडी भाषा उत्तराखंड मूल के लोगों के लिए रोजगार का सबसे बड़ा हथियार बन सकती है। उन्होंने कहा कि आज हर दिन यह बात सामने आती है कि उत्तराखंड में बाहर के लोगों को नौकरी मिल रही है और राज्य के मूल निवासी बेरोजगार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अग उत्तराखंडी भाषा को सरकारी दर्जा मिल जाता है तो राज्य की परीक्षाओं में एक पेपर अनिवार्य रूप से उत्तराखंडी भाषा का सम्मिलित किया जा सकता है और इससे परीक्षा के माध्यम से अन्य प्रांतों की लोगों की छंटनी आसान हो सकती है।