टिहरी जिले के प्रतापनगर ब्लॉक के भगवान श्रीकृष्ण की तपस्थली सेम मुखेम (sem mukhem) समुद्रतल से करीब 7000 फीट की ऊँचाई और मुखेम गांव से 2 किमी की दूरी पर स्थित है. सेम मुखेम नागराज मंदिर श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है, यह एक प्रसिद्ध नाग तीर्थ है.
श्री नागराजा में अपने भक्तों को यूं ही खींच कर लाता हैं. कई किमी की खड़ी पैदल चढ़ाई के बाद भी भक्तों को महसूस नहीं होता है कि वह अपने आराध्य देव के दर्शनों के लिए कब मन्दिर में पहुंचें. माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण यहाँ पर आए थे, और इस स्थान की हरियाली, पवित्रता और सुंदरता ने भगवान श्री कृष्ण का मन आकर्षित कर लिया था. भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ पर ही रहने का मन बना लिया था. लेकिन उनके पास यहाँ रहने के लिए जगह नहीं थी.
श्री कृष्ण ने उस समय यहाँ के राजा गंगू रमोला से रहने के लिए थोड़ी- सी जमीन माँगी थी, लेकिन गंगू रमोला ने श्री कृष्ण को कोई अनजान व्यक्ति है समझकर यहाँ जमीन देने से मना कर दिया था. काफी समय बाद नागवंशी राजा के सपने में प्रभु श्री कृष्ण प्रकट हुए और बताया कि वह यहाँ रहना चाहते हैं, तो नागवंशी राजा गंगू रमोला के पास गए और अपने सपने में आए श्री कृष्ण के बारे में बताया. गंगू रमोला को अपने किए पर लज्जा महसूस हुई और भगवान श्री कृष्ण से माफी माँगी और उन्हें रहने के लिए जमीन भी दी.
प्रभु श्री कृष्ण ने उन्हें प्रेमपूर्वक माफ किया एवं उसके बाद से इस स्थान पर नागवंशियों के राजा नागराज के रूप में जाने, जाने लगे. कुछ समय तक वहाँ रहने के बाद प्रभु ने वहाँ के मंदिर में सदैव के लिए एक बड़े पत्थर के रूप में विराजमान हो गए और अपने परमधाम बैकुंठ धाम चले गए. इसी पत्थर की आज सेम मुखेम मंदिर में नागराज की पूजा की जाती है.
छोटी उंगली से हिलता है दैवीय ढकधुड़ी
मान्यताओं के अनुसार मन्दिर से कुछ दूरी पर एक विशालकाय पत्थर है जो केवल हाथ की सबसे छोटी उंगली से हिलता है. कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति इस पत्थर को अपनी पूरी शक्तियों से हिलाना चाहे तो यह बिल्कुल भी नहीं हिलता-डुलता, लेकिन यदि व्यक्ति अपने एक हाथ की छोटी उंगली से हिलाए तो यह पत्थर एक दम से हिल जाता है. लोगों की मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण ने इस पत्थर पर तपस्या की थी. इस पत्थर की भी लोग पूजा-अर्चना करते हैं. इस पत्थर को ढकधुड़ी नाम से भी जाना जाता है.
मंदिर के गर्भगृह में है नागराजा की स्वयं भू-शिला
इस मंदिर का सुंदर द्वार 14 फुट चौड़ा तथा 27 फुट ऊँचा है. इसमें नागराज फन फैलाये है और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर बंसी की धुन में लीन है. मंदिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते है. मंदिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला है. ये शिला द्वापर युग की बताई जाती है. मंदिर के दाई तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गई है.
हर 3 साल में लगता है भव्य मेला
सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है. हर 3 साल में सेम मुखेम नागराज मंदिर में एक भव्य मेले का आयोजन होता है जो कि मार्गशीर्ष माह की 11 गति को होता है. इस मेले के बहुत से धार्मिक महत्व है इसलिए हजारों की संख्या में इस दिन लोग यहाँ पर आते है और भगवान नागराजा के मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाने की परंपरा है जिसका अपना एक अलग महत्व है.