डुण्डा. इन दिनों बड़ी संख्या में अन्य प्रांतों से गांव लौटने वाले युवा गांव के विद्यालयों में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में रखे गए हैं. इन सेंटरों में रहने को लेकर जहां कई युवा अनेक शिकायतें कर रहें हैं, वहीं बैंगलौर से गांव लौटे युवा श्री टीकाराम सिंह ने एक अनोखी पहल कर राज्य के युवाओं के लिए प्रेरणादाई संदेश दिया है. लाकडाउन में बड़े इंतजार के बाद बैंगलौर से अपने सौकड़ों उत्तराखंडी साथी युवाओं की घर वापसी की राह आसान करने वाले टीकाराम सिंह इन दिनों जनपद उत्तरकाशी के अपने गांव के स्कूल, दुग्डू गाजणा, तहसील डुण्डा के विद्यालय में बीज बम तैयार कर रहे हैं. श्री टीकाराम सिंह ने कहा कि क्योंकि 14 दिन के क्वारन्टाइन में कुछ काम करना संभव नहीं था, तो हमने स्कूल में वृक्ष लगाए और अब हम बीज बम बना रहे हैं.
जापान और मिश्र जैसे देशों में प्रचलित है यह तकनीकी
श्री टीकाराम सिंह ने बीज बम के के बारे में विस्तार से बताया कि यह बीज बम जापान और मिश्र जैसे देशों में तकनीकी सीड बॉल के नाम से सदियों पहले से परंपरागत रूप से बनाए जाते हैं. सीड बॉल को बीज बम नाम इसलिए दिया गया है ताकि इस तरह के अटपटे नाम से लोग आकर्षित हों और इस बारे में जानने का प्रयास करें. इसमें मिट्टी और गोबर को पानी के साथ मिलाकर एक गोला बना दिया है और स्थानीय जलवायु और मौसम के अनुसार उस गोले में कुछ बीज डाल दिये जाते हैं. इस बम को जंगल में कहीं भी अनुकूल स्थान पर छोड़ दिया जाता है.
खेतों में नहीं आते हैं जानवर
हमारा लक्ष्य बंदर, लंगूर और सूअर जैसे वन्य जीव हैं, जो पहाड़ों में खेती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं. इन जानवरों को जंगलों में ही मौसमी सब्जियां आदि मिल जाएं तो वे रिहायशी इलाकों में नहीं आएंगे. दीर्घकाल के लिए भालू, गुलदार और टाइगर जैसे हिंसक जानवर भी हमारा लक्ष्य हैं. इसमें एक भी रुपया खर्च नहीं होता है, क्योंकि सभी चीजें घर में मिल जाती हैं. इसके कई फायदे हैं.
उन्होंने बताया कि इससे जंगल में हरियाली बढ़ती है, साथ ही जंगली जानवरों को जंगल में ही भोजन मिल जाता है. उन्हें भोजन की तलाश में आबादी की ओर नहीं आना पड़ता है. श्री टीकाराम सिंह जी के साथ सहयोगी हिम्मत सिह रावत हैं, जो टीकाराम जी के साथ बैंगलोर से आए हैं. साथ ही बीज बम के प्रेरणास्रोत जाडि संस्थान के संस्थापक द्वारिका सेमवाल जी हैं.
उल्लेखनीय है कि ग्राम सभा ठाण्डी, पट्टी गाजणा के श्री टीकाराम सिंह बंगलौर से गांव आए हैं. वहां भी लाकडाउन के खाली समय में लगभग 100 लोगों का ई पंजीकरण कर उन फंसे लोगों की मदद की. रोज दो-तीन सौ लोगों को ट्रेन और सरकार की अपडेट के बारे में जानकारी दी. टीकाराम सिंह इससे पहले दुबई में काम कर चुके हैं. दुबई से आने के बाद देहरादून में भी गढ़बाजार के नाम दुकान खोलकर स्थानीय जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने की पहल कर चुके हैं, जो आज भी टीकाराम जी के भाई चला रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री जी मोदी जी द्वारा लोकल को बढ़ावा देने की बात के वे परम सर्मथक हैं.