टिहरी. देवभूमि उत्तराखंड में ऐसी कई सामाजिक शख्सियतों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने सामाजिक कार्यों से पहाड़ में फैली अनेक सामाजिक बुराइयों को मिटाने के लिए लोगों को जागरूक किया. इन्हीं सामाजिक शख्सियतों में श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का नाम भी अग्रिम पंक्ति में है. श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी को लोग भले चिपको आंदोलन के नाम से जानते हों, किंतु बहुगुणा जी द्वारा टिहरी में सामाजिक समानता, जन अधिकारों के लिए सतत संघर्ष, गंगा बचाओ आंदोलन और जनता के हकों के लिए सदैव समर्पित रहने का एक लंबा इतिहास है.
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टिहरी राजशाही के खिलाफ श्रीदेव सुमन की लड़ाई को लाहौर से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद श्री सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी रियासत में कांग्रेस के पदाधिकारी के रूप में आगे बढ़ाया. इस बीच 11 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी को राजशाही द्वारा की गई हत्या से फैली विद्रोह की चिनगारी ने 14 जनवरी 1948 राजशाही का तख्ता पलट दिया. कीर्तिनगर से दोनों शहीदों के शवों को लेकर अपार जनसमूह टिहरी के लिए बढ़ चला. टिहरी के कोने-कोने से जनता भी 14 जनवरी को मकरैण के लिए साथ में दाल चावल लेकर टिहरी पहुंची. जनता में राजशाही के खिलाफ इतना आक्रोश था कि राजतंत्र के लोगों की जान बचाने को टिहरी जेल में बंद करना पड़ा. उसी दिन राजशाही का आखिरी दिन था. प्रजामंडल की सरकार बन गई. श्री सुंदर लाल बहुगुणा सरकार में शामिल होने की बजाय कांग्रेस के महामंत्री बने.
शराबबंदी के लिए कीं प्रार्थना सभाएं
वे घंटाघर के पास कांग्रेस के दफ्तर में रहते थे. शराब का प्रकोप जोरों पर था. सबसे खराब स्थिति टिहरी शहर की दलित बस्ती की थी. यहां शराब के नशे में कई परिवारों में गालीगलौज और मारपीट से रोज कलह बना रहता था. इससे दुखी सुंदर लाल बहुगुणा रात में दलित बस्ती में जाकर प्रार्थना सभा करने लगे वे वहां गांधी चरखा लेकर जाते और उस पर सूत कातते. इसमें उन्हें घर के शराबियों से परेशान महिलाओं का साथ मिला. सुंदर लाल उन्हें साफ-सफाई का महत्व बताते और खुद झाड़ू भी लगाते. वे लालटेन की रोशनी में उनके बच्चों को अक्षर ज्ञान भी कराते.
…जब दलित छात्र को नहीं मिला था साथ खाने का अधिकार
राजशाही के दौरान केवल कुछ परिवारों के बच्चों को ही राजा के प्रताप इंटर कालेज में राजा की अनुमति के बाद ही पढ़ाई का मौका मिलता था. प्रजामंडल की सरकार तो बन गई लेकिन कॉलेज और नियम पुराने ही थे. राजा के दर्जी का बेटा होने की वजह से विद्यानाथ को कॉलेज और हॉस्टल में दाखिला तो मिल गया पर वह भी भेदभाव का शिकार था.
इसी बीच एक दिन छात्र श्री विद्यासागर नौटियाल और श्री कामेश्वर प्रसाद बहुगुणा श्री सुंदर लाल बहुगुणा के पास आए, कहा टिहरी में जातीय समानता की बात बेमानी है. यहां सरकारी हॉस्टल में विद्यानाथ को सवर्ण छात्रों से अलग बाहर आंगन में खाना दिया जाता है. सुंदर लाल ने उनसे कहा कि विरोधस्वरूप तुम दोनों भी उसके साथ बाहर आंगन मे बैठकर खाना खाना शुरू कर दो. दो- तीन दिन बाद दोनों फिर सुंदर लाल बहुगुणा के पास आए और कहा आंगन में तेज धूप में बैठकर वे खाना नहीं खा सकते.
बहुगुणा ने कहा कि तीनों मेरे पास रहने चले आओ और इस तरह टिहरी के कांग्रेस भवन में जातीय समानता के संदेश को लेकर ठक्कर बापा छात्रावास की शुरुआत हुई. बाद में लोगों से चंदा लेकर और भिलंगना से छात्रों के साथ पीठ पर पत्थर रेत सार कर सुंदर लाल बहुगुणा ने मॉडल स्कूल के पास ठक्कर बापा छात्रावास के भवन का निर्माण कराया. चंद्र सिंह, बिहारी लाल, इंद्र सिंह, महेंद्र सिंह, बर्फिया लाल जुंवाठा, अनंतराम, भवानी भाई इसके शुरुआती छात्रों में से थे. बाद में मंत्री प्रसाद नैथानी, देवीलाल, डीएल शाह, सूर्यप्रकाश शाह, रामलाल, भगवती प्रसाद टमटा, बेणीमाधव शाह, सूरजनसिंह शाह, नरेंद्र शाह, गोविंद आर्य समेत कई छात्र यहीं से पढ़कर आगे बढ़े.