मुंबई। पिछले कुछ साल से मुंबई में आयोजित होने वाले प्रवासी उत्तराखंडियों के सबसे बड़े सांस्कृतिक आयोजन मुंबई कौथिग अपनी लोकप्रियता के कारण हमेशा चर्चा में रहा है। इस आयोजन को लेकर सोशल मीडिया मंचों पर भी खूब चर्चा सामने आती रही हैं। यह चर्चा अनपेक्षित भी नहीं है, जिस उत्तराखंडी समाज ने सौ सवा सौ साल के बाद अपनी सामाजिक एकजुटता के बल पर पिछले 15 साल में मुंबई कौथिग के रूप में उत्तराखंड समाज की एक नई पहचान गढ़ने में अपनी भागीदारी निभाई है, उस समाज का साल दर साल उत्साह बढ़ना स्वाभाविक है। हालांकि कई लोगों के मन ये सवाल भी उठते हैं कि क्या कौथिग का मकसद सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने तक सीमित है? इस बारे में कौथिग फाउंडेशन मुंबई के अध्यक्ष व ट्रस्टी श्री हीरा सिंह भाकुनी जी से कौथिग फाउंडेशन के वैधानिक मुद्दों और ट्रस्ट के उद्देश्यों को लेकर विस्तार से बातचीत की गई।
इसलिए स्वीकार की थी कौथिग फाउंडेशन मुंबई के अध्यक्ष की जिम्मेदारी
इस बातचीत में कौथिग फाउंडेशन मुंबई के अध्यक्ष व ट्रस्टी श्री भाकुनी जी ने बताया कि मुंबई कौथिग पिछले 15 साल से चल रहा है, इसके संस्थापक अध्यक्ष डा. योगेश्वर शर्मा धस्माणा जी के बाद मुझे कौथिग फाउंडेशन में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। अपने कारोबार की तमाम व्यस्तता के बावजूद मैंने यह जिम्मेदारी इसलिए स्वीकार की थी कि साल में सिर्फ एक बार सांस्कृतिक कार्यक्रम से आगे बढ़कर हम सब मिलकर उत्तराखंडी समाज के सामूहिक हितों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों की स्थापना आदि के क्षेत्र में आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ प्रेरणादाई पहल कर सकें। इस पहल के लिए सबसे पहले कौथिग फाउंडेशन को वैधानिक स्वरूप देना जरूरी था। कहना न होगा कि कौथिग का आयोजन भले 2008 से किया जा रहा था, लेकिन इसका सामूहिक सामाजिक उद्देश्यों के लिए विधिसम्मत धारा में लाने के लिए पहली कोशिश मेरे कार्यकाल 2018 से की गई। इसके लिए सात सदस्यों का एक ट्रस्ट बनाया गया। जिसे पूरी तरह धर्मार्थ ट्रस्ट के दायरे में लाने का मैं निरंतर प्रयास कर रहा हूं। कौथिग फाउंडेशन मुंबई का निजी हितों के लिए कोई वाणिज्यिक लाभ लेना उद्देश्य बिल्कुल नहीं है। कौथिग फाउंडेशन की संपत्तियों, प्रतिभूतियों, धन और आय को भारत में नस्ल, धर्म, जाति या लिंग के किसी भी भेदभाव के बिना ट्रस्ट के उद्देश्यों के लिए ही इस्तेमाल किया जाना पहली प्राथमिकता है।
पहले समाज से लगाई गुहार, फिर पहुंचा चैरिटी कमिश्नर मुंबई के दरबार
जब इस बारे में पूछा गया कि आखिर विवाद किस बात को लेकर है ताे भाकुनी जी ने बताया कि दरअसल, ट्रस्ट का कोई भी हिस्सा ट्रस्टियों के बीच वितरित नहीं किया जा सकता, यह धर्मार्थ ट्रस्ट अधिनियम के तहत साफ-साफ उल्लेखित है। इसके बावजूद ऐसी अनियमितताएं पिछले दौर में सामने आई हैं। इन्हें ठीक करना अध्यक्ष के नाते मैं और कार्याध्यक्ष के नाते श्री सुशील कुमार जोशी जी अपनी पहली जिम्मेदारी समझते हैं। इसलिए हम इस धर्मार्थ ट्रस्ट को महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के प्रावधानों के अधीन वैधानिक स्वरूप में स्थापित करना चाहते हैं। अगर हम इसे ठीक कर पाएं तो इससे कौथिग फाउंडेशन को आगे चलकर समाज के सामूहिक हितों के लिए कार्य करने में आसानी होगी।
भाकुनी जी ने कहा कि कौथिग फाउंडेशन को विधि सम्मत स्वरूप में लाने के मेरे प्रयास अन्य ट्रस्टियों के सहयोग और खासकर ट्रस्ट के पदाधिकारियों के बिना संभव नहीं थे। मैंने कई बार कौथिग फाउंडेशन के महासचिव तरुण चौहान, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र रूपलाल जी से आग्रह किया कि वे कौथिग फाउंडेशन की वैधानिक औपचारिकताओं को पूरी करने के लिए अपना सहयोग दें। लेकिन बार-बार की मीटिंग आहूत करने के बाद भी पदाधिकारियों ने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया। समाज कौथिग को लेकर मुझ से सवाल पूछता है, जो बिल्कुल जायज भी है, क्योंकि अध्यक्ष होने के नाते समाज के सवालों के समाधान करने की जिम्मेदारी मेरी ही है। ऐसे में जब पदाधिकारी मेरी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे थे, तब मैंने उत्तराखंडी समाज की एक आम बैठक पिछले साल उत्तराखंड भवन वाशी में आहूत की थी, जिसमें मेरे कार्यकाल में कौथिग फाउंडेशन की गतिविधियों को लेकर मैंने अपना पक्ष रखा और समाज हित के लिए कौथिग फाउंडेशन के संवैधानिक पक्ष को मजबूत कर आयकर अधिनियम 1961 के तहत संस्था को मजबूती देने के लिए सहयोग की अपील की। इसमें दोनों पदाधिकारियों और अन्य ट्रस्टियों से बातचीत कर समाधान निकालने के लिए उत्तराखंड समाज ने एक स्वर से सामाजिक प्रतिनिधियों के प्रतिनिधिमंडल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी थी, जिसका परिणाम भी बेनतीजा रहा। अंतत: यह मामला चैरिटी कमिश्नर मुंबई के पास पहुंचा और वहां विचाराधीन है।
भाकुनी जी ने कहा कि मैं उत्तराखंडी समाज को पूरी तरह आश्वस्त करता हूं कि कौथिग फाउंडेशन मुंबई धर्मार्थ ट्रस्ट को महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के प्रावधानों की कसौटी पर खड़ा करने और समाज व ट्रस्ट के प्रति ट्रस्ट के पदाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चत करने का पूरा प्रयास करूंगा।
उत्तराखंडी समाज को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार के लिए सामूहिक पहल है उद्देश्य
कौथिग फाउंडेशन के उद्देश्यों के बारे में भाकुनी जी ने बताया कि मेरा उद्देश्य है कि हम सब मिलकर कौथिग फाउंडेशन, मुंबई को एक ऐसा वट वृक्ष के रूप में उत्तराखंडी समाज को समर्पित करें, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, कौशल विकास और हमारे अपने उच्च शिक्षा संस्थान की कई मूल्यवान शाखाओं की शीतल छाया में आगे बढ़ सकें। इसमें कौथिग फाउंडेशन के अंतर्गत उत्तराखंडी समाज के बच्चों के लिए शैक्षिक सहायता और मार्गदर्शन, गरीब और जरूरतमंद परिवारों के बच्चों की शिक्षा के लिए नर्सरी, स्कूल, कॉलेज संस्थान खोलना, स्कूलों, छात्रावासों, बोर्डिंग हाउस की स्थापना और सहयोग करना और गरीब और योग्य छात्रों को जाति, पंथ, धर्म रंग या लिंग के किसी भी भेदभाव के बिना मुफ्त भोजन और आवास प्रदान करना, समाज के योग्य छात्रों को छात्रवृत्ति के माध्यम से या तो आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना, कला, विज्ञान, साहित्य, मानविकी और अन्य सभी उपयोगी विषयों में उनकी सभी अभिव्यक्तियों में शिक्षा और ज्ञान की उन्नति के लिए संस्थान स्थापित करना मेरी प्राथमिकता है।
सात से ऊपर इसलिए नहीं हो सकी सदस्यों की संख्या
जब भाकुनी जी से पूछा गया कि इतने साल में सदस्य क्यों नहीं बढाए गए तो उन्होंने कि लाखों प्रवासियों के जेहन में यह सवाल उठना स्वाभाविक सवाल है कि कौथिग फाउंडेशन में ट्रस्टियों की संख्या सात से ऊपर क्यों नहीं हुई। निश्चित रूप से लाखों प्रवासियों के नाम पर हम जो धर्मार्थ ट्रस्ट बनाने की पहल कर रहे हैं उसमें अतिरिक्त ट्रस्टियों संख्या को ट्रस्टियों द्वारा संयुक्त रूप से 2/3 बहुमत के साथ बढ़ाई जा सकती है, लेकिन जब तक हम इसे धर्मार्थ ट्रस्ट के नियमों के ढांचे में नहीं ढाल पाएंगे, तब तक यह संभव नहीं है। इसलिए मेरा यही अंतिम उद्देश्य भी है कि हम कौथिग फाउंडेशन मुंबई को धर्माथ ट्रस्ट के प्रावधानों के अनुरूप सही स्वरूप दें और लाखों उत्तराखंडी इसके सदस्य बनकर समाज की संगठित शक्ति के रूप में आने वाली पीढ़ी के लिए मुंबई ही नहीं, देश भर में नई इबारत लिखें। इसीलिए कौथिग फाउंडेशन का लीगल मामला चैरिटी कमिश्नर के यहां विचाराधीन है।