मुंबई. महाराष्ट्र के राजभवन मलबार हिल के सभागार में उत्तराखंड की प्रतिनिधि भाषा का पहला सम्मेलन सम्पन्न हुआ. इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम श्री भगतसिंह कोश्यारी थे. जिनका स्वागत पुष्पगुच्छ और शॉल भेंट कर कार्यक्रम के मार्गदर्शक डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी व संयोजक श्री चामू सिंह राणा ने किया. सम्मेलन के अतिथि वक्ता देहरादून से डॉ. आशा रावत, हल्द्वानी से श्री गणेश पाठक और डॉ. हुकुम सिंह कुंवर, दिल्ली से श्री नीलांबर पाण्डेय को आमंत्रित किया गया था. जिन्हें श्री भगत सिंह कोश्यारी ने पुष्पगुच्छ व शॉल भेंट कर स्वागत किया.
भाषा बोलने से ही बचेगी : राज्यपाल
सम्मेलन में श्री कोश्यारी जी ने कहा कि भाषा बोलने से ही बचेगी. हम अपने परिवार व अपने आपस में अपनी बोली भाषा में बात नहीं करेंगे तो फिर अपनी भाषा कैसे बचा सकेंगे. उन्होंने उतराखण्ड की प्रतिनिधि भाषा के इस प्रयास की सराहना करते कहा कि गढ़वाली कुमाऊंनी बहुत पौराणिक भाषाएं हैं, इनका अपना इतिहास और साहित्य है. उनके स्वरूप को यथावत रखना भी आवश्यक है. उन्होंने हिंदी खड़ी बोली में बाईस बोली भाषाओं के शब्दों के एकीकृत करने में गढ़वाली कुमाऊंनी को भी हिंदी खड़ी बोली की जननी माना है.
राज्य की भाषाओं लिए अब उम्मीद : चामू सिंह राणा
कार्यक्रम के संयोजक श्री चामू सिंह राणा ने कहा कि उत्तराखंड राज्य की 2000 में स्थापना के बाद और गत बाईस वर्षों में उत्तराखंड सरकार ने राज्य की भाषाओं के लिए कुछ खास नहीं कर सकी. भाषाई विभिन्नताओं से और एक प्रतिनिधि भाषा की ओर सरकार का रुझान न होने से अभी तक न कोई अकादमी बना सके न भाषा परिषद ही बनी, अब माननीय कोश्यारी जी के आशीर्वाद से उत्तराखंड की प्रतिनिधि भाषा के लिए नए सिरे से काम होगा.
प्रतिनिधि भाषा दूर करेगी गढ़-कुमाऊं की भाषाई टकराहट : डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी
भाषा वैज्ञानिक डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी ने उत्तराखण्ड की चौदह भाषाओं का जिक्र करते हुए उनकी सभी उपबोलियों की जानकारी दी और कहा कि इन सभी के शब्दों को संकलित कर संरक्षण देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भाषा आपसी संप्रेषण और विद्यालयों में पढ़ने पढ़ाने से ही बचेगी. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की एक प्रतिनिधि भाषा गढ़वाल कुमाऊं की भाषाई टकराहट को दूर करेगी. जिसके माध्यम से सभी मध्य पहाड़ी भाषाओं को संरक्षण मिलेगा.
नीलांबर पांडेय ने किया गुमानी पन्त के योगदान का उल्लेख
डॉ. आशा रावत ने भाषा की वैज्ञानिक शब्दावली की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अनेक उदाहरण दिए. उन्होंने उतराखण्ड की प्रतिनिधि भाषा के लिए कार्य करने पर जोर दिया. श्री नीलांबर पाण्डेय ने हिंदी खड़ी बोली के आरम्भिक दौर में गुमानी पंत का उल्लेख किया.
गुमानी पंत के चौपाइयों में कुमाऊनी, नेपाली, अवधी भोजपुरी के शब्दों का प्रयोग किया था उसी तरह उतराखण्ड की प्रतिनिधि भाषा के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए. श्री गणेश पाठक ने कहा कि उत्तराखंड की प्रतिनिधि भाषा के लिए संवैचारिक साहित्यकारों समाजसेवियों को आपस में मिलकर काम करना होगा. उन्होंने डॉ जलन्धरी की देशव्यापी जागरूकता अभियान की प्रशंसा की. उन्होंने विश्वास जताया कि इस विषय पर श्री कोश्यारी जी ही कार्यवाही आगे बढ़ा सकते हैं.
मुख्यमंत्री धामी को दिया जाएगा यह प्रस्ताव
इस कार्यक्रम में डॉ. राजेश्वर उनियाल ने अपने स्वागत भाषण में इस सम्मेलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. सम्मेलन का मंच संचालक राज्यपाल के मीडिया सलाहकार श्री संजय बलोदी प्रखर ने किया. कार्यक्रम के अंत में राजभवन के सभागार से एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसे एक प्रतिनिधि मंडल उतराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी को देंगे और उसकी प्रति श्री कोश्यारी जी को देंगे.
कई गणमान्य रहे मौजूद
इस कार्यक्रम में जिन संगठनों के मुख्य पदाधिकारी शामिल हुए उनमें उत्तरांचल मित्र मंडल बसई से महेश नैलवाल, गढ़वाल भ्रात मंडल मुंबई से रमण कुकरेती, मनोज द्विवेदी, उतराखण्ड रायगढ़ जनकल्याण समिति से धनश्याम भट्ट, प्रवीण ठाकुर, गढकुमाऊं पर्वतीय समाज विरार से दिनेश अंथवाल, चंद परिवार फाउंडेशन से डी.बी. चंद और महेश रजवार, देवभूमि स्पोर्ट्स फाउंडेशन से सुरेश राणा, लक्ष्मण सिंह ठाकुर के अलावा बलबीर सिंह रावत, महावीर पैनूली, रमेश गोदियाल, सीए रणवीर सिंह नेगी, ओम प्रकाश बडोनी, सिमनलाल आर्य इत्यादि सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित हुए.