-गोविंद आर्य
गैरसैंण. उत्तराखंड राज्य निर्माण के 20 साल बाद पहली बार लगा कि इस राज्य को एक जननेता मिल गया है. जी हां, मैं बात कर रहा हूं उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्रसिंह रावत जी की. उत्तराखंड ने देश को हेमवंती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, गोविंद बल्लभ पंत जैसे बड़े नेता भले दिए हों, लेकिन उत्तराखंड को अपने लिए किसी जननेता का सदैव अकाल रहा है.
आई-गई सत्ताओं के बीच उत्तराखंड में सरकारें तो बदलीं, लेकिन उसे खुद के लिए एक जननेता मिलने के लिए राज्य निर्माण के बाद 20 साल इंतजार करना पड़ा. इन 20 सालों में राज्य को भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों से लगभग आधा दर्जन मुख्यमंत्री तो मिले, लेकिन जननेता नहीं! उत्तराखंड को अंतत: अब 20 साल के बाद एक जननेता त्रिवेंद्रसिंह रावत के रूप में मिल गया है.
गैरसैंण उत्तराखंडियों की भावना की राजधानी राज्य निर्माण के आंदोलन से पहले ही रही है, किंतु राज्य निर्माण के बाद आवश्यकता थी गैरसैंण को सरकारी कागजों में जनभावना के अनुरूप राजधानी के रूप में मान्यता देने की. राजनीतिक नफा-नुकसान और शहरतलब नेताओं ने गैरसैंण के नाम पर जनता को लगातार 20 सालों तक खूब छला और यह मुद्दा हमेशा चुनाव में वोट के फायदे के लिए चुनाव तक ही सीमित रखा. सभी मुख्यमंत्री गैरसैंण को राजधानी के रूप में राजनीतिक मान्यता देने से हमेशा बचते रहे.
दृढ़इच्छा शक्ति ने लिया साहसिक फैसला
निश्चित रूप से ऐसे जटिल मसले पर बहुत ज्यादा दृढ़इच्छा शक्ति की जरूरत थी, जो आज तक उत्तराखंड की सत्ता में काबिज रहे नेता नहीं जुटा पाए. हमेशा पद और सत्ता के मद में खोए राज्य के किसी भी मुख्यमंत्री ने यह जहमत नहीं उठाई कि उत्तराखंड आंदोलनकारियों, शहीदों के सपने पर कुछ कदम आगे बढ़ा जाए. आज जब एक तरफ पलायन की मार से पहाड़ के गांव लगातार खाली हो रहे हों, सुविधाओं को भोगने का नशा पहाड़वासियों पर भी इस कदर हावी हो कि लोग गांव के दसों घरों पर ताला जड़, मैदानी क्षेत्रों के दो रूमों में सिमट जाने को आतुर हों, ऐसे समय में उत्तराखंड की राजधानी को ग्रीष्मकालीन के नाम से ही सही, गैरसैंण ले जाने का संकल्प कोई सच्चा उत्तराखंड प्रेमी माननीय त्रिवेंद्रसिंह रावत जैसा राजनेता ही कर सकता है.
यह भी ऐसे दौर में जब छद्म पहाड़प्रेमी नेता सूबे के मुख्यमंत्री बदलने, नेतृत्व परिवर्तन आदि की मनगढ़ंत खबरों से अपनी किस्मत खुलने का इंतजार कर रहे हों, ऐसे कठिन समय में भी राज्य के लिए ऐतिहासिक इबारत लिखने का साहस कर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने नया इतिहास लिखकर यह जता दिया कि राजनीति में ऐसे मौके बार-बार तब ही आते हैं, जब जनभावनाओं की पूर्ति बिना राजनीतिक लाभ हानि के कर दी जाए. आज गैरसैंण में होली और दिवाली एक साथ मनाने का जश्न यही कह रहा है कि उत्तराखंड को अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत के रूप में एक जननेता मिल गया है.